For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : वक़्त कसाई के हाथों मैं इतनी बार कटा हूँ

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२

 

वक़्त कसाई के हाथों मैं इतनी बार कटा हूँ

जाने कितने टुकड़ों में किस किस के साथ गया हूँ

 

हल्के आघातों से भी मैं टूट बिखर जाता हूँ

इतनी बार हुआ हुँ ठंडा इतनी बार तपा हूँ

 

जाने क्या आकर्षण, क्या जादू होता है इनमें

झूठे वादों की कीमत पर मैं हर बार बिका हूँ

 

अब दोनों में कोई अन्तर समझ नहीं आता है

सुख में दुख में आँसू बनकर इतनी बार बहा हूँ

 

मुझमें ही शैतान कहीं है और कहीं है इन्साँ

माने या मत माने दुनिया मैं ही कहीं ख़ुदा हूँ

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 700

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 16, 2015 at 10:30am
बहुत बहुत धन्यवाद आ. राजेश कुमारी जी
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 16, 2015 at 10:29am
बहुत बहुत शुक्रिया महर्षि जी
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 9:37pm

धर्मेन्द्र जी

अच्छी गजल है . मुझे आपका आख़िरी शेर भी बहुत सोना लगा .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 9:34am

हल्के आघातों से भी मैं टूट बिखर जाता हूँ

इतनी बार हुआ हुँ ठंडा इतनी बार तपा हूँ   -- लाजवाब ,इस  शे र के लिये और गज़ल के लिये आपकोअ हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 14, 2015 at 9:18pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी बेहतरीन अशआर से सजी उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई....

ये अशआर बहुत बेहतरीन हुए है-

हल्के आघातों से भी मैं टूट बिखर जाता हूँ

इतनी बार हुआ हुँ ठंडा इतनी बार तपा हूँ

 

जाने क्या आकर्षण, क्या जादू होता है इनमें

झूठे वादों की कीमत पर मैं हर बार बिका हूँ

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on March 14, 2015 at 4:20pm

वक़्त कसाई के हाथों मैं इतनी बार कटा हूँ

जाने कितने टुकड़ों में किस किस के साथ गया हूँ

धर्मेन्द्र जी बहुत खूब--बधाई --भ्रमर ५

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:45am

हल्के आघातों से भी मैं टूट बिखर जाता हूँ

इतनी बार हुआ हुँ ठंडा इतनी बार तपा हूँ

 

जाने क्या आकर्षण, क्या जादू होता है इनमें

झूठे वादों की कीमत पर मैं हर बार बिका हूँ

 आदरणीय धर्मेंदर जी ,सभी अशआर बेहद पसंद  आये ,आपको हार्दिक बधाई |सादर अभिनन्दन |

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 5:45pm

आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी बहुत सुन्दर ,

वक़्त कसाई के हाथों मैं इतनी बार कटा हूँ

जाने कितने टुकड़ों में किस किस के साथ गया हूँ...वाह 

जाने क्या आकर्षण, क्या जादू होता है इनमें

झूठे वादों की कीमत पर मैं हर बार बिका हूँ..........वाह , बधाई आपको इस रचना पर ! सादर"

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 7:47am

वाह क्या बात है आदरणीय धर्मेन्द्र जी सारे अश'आर लाजवाब हैें

Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on March 13, 2015 at 5:33am

वक़्त कसाई के हाथों मैं इतनी बार कटा हूँ .....भाव सुंदर लगे बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service