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मनहरण घनाक्षरी - "होली"

रंग की उमंग देखो होली हुडदंग देखो ,
लाल लाल रंग डाल सखी सारी लाल हैं |

राग फाग छेड़ कर भाभी आई झूम झूम
पल में ही रंगी सखी मुख पे गुलाल हैं |

पीली पीली पिचकारी रंग हरा खूब डारी
भागी सखी घूम घूम हमको मलाल है |

अब नहीं दिख रही होली वह भोली भाली
मन मेरे बार बार उठता सवाल है |

(मौलिक अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Chhaya Shukla on March 8, 2015 at 12:46pm

आदरणीय हरी प्रकाश दूबे जी
छंद की सराहना के लिए अतिशय आभार
सादर नमन

Comment by Chhaya Shukla on March 8, 2015 at 12:45pm

आदरणीय स्याम नारायण वर्मा जी
छंद की सराहना के लिए अतिशय आभार
सादर नमन

Comment by Chhaya Shukla on March 8, 2015 at 12:44pm

आदरणीय डॉ गोपाल जी
छंद की सराहना के लिए अतिशय आभार
सादर नमन

Comment by Hari Prakash Dubey on March 8, 2015 at 12:38pm

आदरणीय छाया शुक्ल जी , सुन्दर रचना है ,हार्दिक बधाई आपको सादर !

Comment by Shyam Narain Verma on March 7, 2015 at 5:19pm
उम्दा छंद रचना के लिए बधाई आपको |
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 6, 2015 at 11:04am

आ० छाया जी

सुन्दर प्रयास  i वाह i

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