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गज़ल-मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से

1222 1222 1222 1222
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ठसक तेरी मेरी गैरत के आपस में उलझने से
मुहब्बत लुट गयी अपनी दिलों में जह्र पलने से
..........
दगाबाजी से अच्छा तो अलग होना मुनासिब था
बफाओं के बिना क्या है सफर में साथ चलने से
...........
मेरा घर अपने हाथों से कभी मैंने जलाया था
नहीं लगता मुझे अब डर किसी का घर भी जलने से
----------
तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है 
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से
-----------
रहा ता- उम्र मैं हर्फे-गलत बेज़ार सा यारो
सुकूँ मिलने लगा है अब मुझे तनहाई मिलने से
...........
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment by umesh katara on February 14, 2015 at 10:18am

शुक्रिया Hari Prakash Dubey ji

Comment by Hari Prakash Dubey on February 14, 2015 at 9:26am

आदरणीय उमेश कटारा जी////तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से॥   वाह .../// बहुत शानदार रचना , बधाई, सादर।

Comment by umesh katara on February 13, 2015 at 7:17pm

शुक्रिया Dr Ashutosh Mishra जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2015 at 5:12pm

आदरणीय उमेश जी इस उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्डक बधाई सादर 

Comment by umesh katara on February 13, 2015 at 9:46am

गजल को पसन्द किया आपका तहेदिल से आभार Samar kabeer जी

Comment by Samar kabeer on February 12, 2015 at 10:59pm
जनाब उमेश कटारा जी,आदाब,अच्छी और सुन्दर ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं|
Comment by umesh katara on February 12, 2015 at 9:27pm

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 12, 2015 at 9:26pm
उम्दा ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by umesh katara on February 12, 2015 at 7:12pm

गजल को पसन्द किया आपका तहेदिल से आभार डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव ji

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 12, 2015 at 6:43pm

तू पत्थर है मुझे हरबार चकनाचूर करता है 
मैं सीसा हूँ मुझे अफसोस क्या होगा बिखरने से------- क्या बात है  i अति सुन्दर i

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