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बदन पे वही लिबास भाई।

22 22 22 22
बदन पे वही लिबास भाई।
दिखता फिर से उदास भाई।।

कड़वी बातें क्यों करते हैं।
कुछ तो रखिये मिठास भाई।।

वादों की बौछार न करिये।
सच में हो इक प्रयास भाई।।

मरा भूख से फिर भी देखो।
लगते क्या क्या कयास भाई।।

चाँद तारे किस काम के जब।
दीपक से घर उजास भाई।।
********************
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

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Comment by Shyam Narain Verma on January 31, 2015 at 3:43pm

बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ. ..  

Comment by Shyam Mathpal on January 31, 2015 at 2:40pm

aadarniya pathak ji,

Sundar rachna ke liye badhai. 

Suraj Lane ka wada tha,

diya tak nahin jalaya

Samundar lane ka wada that 

Pani tak nahin pilya

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 31, 2015 at 2:19pm

पाठक जी

अच्छी गजल कही आपने i i

Comment by ram shiromani pathak on January 31, 2015 at 12:45pm
जीतेन्द्र भाई बहुत आभार आपका।।सादर
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 31, 2015 at 12:25pm

बहुत सुंदर गजल कही है आदरणीय राम भाई. सभी सामयिक शेर, दिली बधाई लीजिये

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