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लघुकथा : वात्सल्य (गणेश जी बागी)

च्ची को मोटरसाइकिल पर बैठा छोड़ कस्टमर दुकान के अंदर आया और बोला,
"भाई साहब जरा बिटिया के लिए टॉफी और बिस्किट देना"
अभी मैं बिस्किट निकालने के लिए मुड़ा ही था कि बाहर धड़ाम की आवाज के साथ मोटरसाइकिल गिर गयी और बच्ची भी। कुछ लोगो ने बच्ची को उठाया और उसके हाथ व पैर में लगी चोटों को देखने लगे । इधर कस्टमर भी दौड़ कर बाहर भागा और जल्दी से मोटरसाईकिल उठाया तथा टूटी हुई हेड लाइट को देखते ही चटाक की आवाज ।
बच्ची के गाल पर उँगलियों की छाप व आँखों में आँसू स्पष्ट दिख रहे थे ।

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : फेस वैल्यू

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 22, 2015 at 10:43am

आदरणीय कृष्ण सिंह जी, लघुकथा आपको पसंद आयी और प्रथम प्रतिक्रिया आप द्वारा प्राप्त हुई इसके लिए बहुत बहुत आभार.

Comment by विनय कुमार on January 21, 2015 at 9:34pm

बहुत बहुत बधाई आदरणीय गणेश जी , कथा अपना सन्देश स्पष्ट करती है..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 9:02pm

भौतिकवाद के पीछे दम तोड़ता वात्सल्य ...भाव बहुत अच्छे से लघुकथा में समाविष्ट है बहुत खूब हार्दिक बधाई आपको आ० गणेश जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 21, 2015 at 8:18pm

अब मैं क्या कहूं सर, आपने सबकुछ कह दिया ....वात्सल्य का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है ...

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2015 at 8:02pm
अर्थ हर अर्थ पर भारी है,
सुन्दर एवं मार्मिक कथा। बधाई आदरणीय इंजी 0 गणेश जी बागी जी, सादर।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 21, 2015 at 7:51pm

आदरणीय इं. गणेश जी “बाग़ी” सर, बहुत ही संवेदनशील लघुकथा है .., वात्सल्य, दम तोड़ रहा है , कारण ..वस्तु ...पैसा ...मजबूरी , मनोविज्ञान ...कम शब्दों में बहुत  कुछ ! सुन्दर रचना , सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 21, 2015 at 7:41pm

आदरणीय बागी सर बहुत ही मार्मिक लघुकथा.... भावनाओं पर भौतिकवाद हावी हो रहा है .... कथ्य के मर्म को संप्रेषित करने में सफल लघुकथा .... हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by Krishnasingh Pela on January 21, 2015 at 7:35pm
लघुकथा मर्मस्पर्शी है । वस्तुओं के आगे प्यार, वात्सल्य जैसी भावनाएँ कैसे दम तोड़ रही हैं, इस बात को कथाकार अभिव्यक्त करने में सफल रहा है । बधाई स्वीकार करें आदरणीय Er.Ganesh Jee 'Bagi' साहब ।

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