For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"अपने गावँ बुलाती हो"

जब भी उमड़ घुमड़ कर काले बादल नभ में आते हैं,

पुरवाई के झोंके आ आकर चुप-चुप दस्तक दे जातें हैं !

मेरे कानों में आ चुपके से तुम  कुछ कह जाती हो,

मुझको लगता फिर बार-बार तुम अपने गावँ बुलाती हो !!

 

कहती हो आकर देखो फिर ताल-तललिया भर आई,

आकर देखो वन उपवन में फिर से हरियाली छाई !

शुष्क लता वल्लारियाँ भी अब दुल्हन बन इठलाती हैं,

कुञ्ज बनाकर आँख मिचौली खेल –खेल मुस्कातीं हैं !!

 

बुढा बरगद फिर छैला बन पुरवाई संग झूम रहा ,

कालू भैंसा नागा बन फिर गली-गली में घूम रहा !

फिर से नाव नदी में लेकर माँझी गाता है छइया ,

हरदम हांक लगता रहता आओ पार चलें भईया !!

 

फिर से झूला पड़ा बाग़ में लेकर अपनी हमजोली ,

रात–रात भर कजरी गाती फिर से सखियों की टोली !

ढलती शाम जुगनुओं का मेला फिर से लग जाता है,

बँसवारी से कभी-कभी चंदा भी छुपकर आ जाता है !!

 

खेतों में हरियाली की चादर फिर से लहराई है ,

आकर देखो इन ज्वार बाजरों पर छाई तरुणाई है !

जब भी समय सुहाना आता तुमको भूल न पाती हूँ ,

इसीलिए जब-तब चुपके से तुमको अपने गावँ बुलाती हूँ !!  

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

  

 

Views: 711

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 8:09pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर ,प्रयास करता हूँ , आपका हार्दिक आभार, सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 10, 2015 at 8:01pm

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , बहुत बढिया भाव गीत की रचना हुई है , बस पंक्तियों की मात्रायें न मिलने प्रवाह मे कुछ कमी लग रही  है  , आप मे क्षमता है ,चाहें तो  सुधार निश्चित कर सकते हैं ।  आपको गीत के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 7:10pm

आपकी प्रशस्ति हेतु ह्रदय से धन्यवाद आदरणीय डॉक्टर विजय शंकर सर , सादर ।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 7:01pm

आदरणीय अजय शर्मा जी ,रचना पर आपकी उपस्तिथी ,उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक , सादर !

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:57pm

आदरणीय मिथिलेश जी , सबसे पहले आपका दिल से आभार , आपने जबरदस्त विश्लेषण कर दिया , दरअसल हिन्दी साहित्य का बहुत अधिक ज्ञान नहीं है , आप जैसे रचनाकारों से ही सीख रहा हूँ , मार्दर्शन करते रहिएगा !  सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:51pm

आदरणीय डॉ आशुतोष जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार, आपका विश्लेषण सही है , देखिये मंच पर ही सीख रहा हूँ , मार्दर्शन करते रहिएगा ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:44pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार, सादर!

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 6:43pm

रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आदरणीय  श्याम नारायण वर्मा  जी !.

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 10, 2015 at 5:54am
रोचक प्रस्तुति , आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी , बधाई, सादर।
Comment by ajay sharma on January 9, 2015 at 10:39pm

इसीलिए जब-तब चुपके से तुमको अपने गावँ बुलाती हूँ !!  ....................... bahut he marmsprashi rachna ke liye dili mubaraqbad .......................bahut bahut khoob geet racha hai bade bhai 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service