For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल --१२२२--१२२२--१२२२--१२२२

१२२२-१२२२-१२२२-१२२२

अना के ज़ोर से कमज़ोर रिश्ते टूट जाते हैं

ज़रा सी बाहमी टक्कर से शीशे टूट जाते हैं

 

गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी

गर आपस में उलझ जायें तो धागे टूट जाते हैं

 

बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो

ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं

 

किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी

करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं

 

तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं ज़र्रे

अगर गर्दिश में हो तारे सितारे टूट जाते हैं

 

चमन में बेटियों के वालिदों सा हाल है इनका

उठाकर तितलियों का भार पौधे टूट जाते हैं

 

शजर दिल का हिलाती है ग़मों की आँधियाँ जब जब

समर के रूप में ग़ज़लों के मिसरे टूट जाते हैं

 

अगर हम सोच को मैदान सा विस्तार दें यारों

दीवारें टूट जाती हैं दरीचे टूट जाते हैं

 

बग़ावत के फ़िसोसे सूझते हैं पेट भरने पर

अगर करने पड़े फ़ाक़े इरादे  टूट जाते हैं

 

न बन यूं कोह चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर

ग़मों के बोझ से तो अच्छे अच्छे टूट जाते हैं

 

सवेरा इसलिये ‘खुरशीद’ फिर लेकर चला आया

मुसल्सल तीरगी हो तो फ़रिश्ते टूट जाते हैं

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 9, 2015 at 9:32pm

कहो 'खुर्शीद' सी गज़लें, गज़ब लहजा सिखाती है 

ग़ज़लगो तुम नहीं 'मिथिलेश' धोके टूट जाते है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 9, 2015 at 9:25pm

आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी .... बस कमाल हो गया है ......... एक एक अशआर कमाल है .... पढ़कर झूम गया हूँ ..... इस बह्र में मैंने जो बेहतरीन सर्वश्रेष्ट पांच गज़ले पढ़ी है ये उसमें से एक हो गई....दिल से दाद कुबूल कीजिये .... नमन 

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 9, 2015 at 7:21pm
बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , बधाई , सादर।
Comment by maharshi tripathi on January 9, 2015 at 6:24pm

बेहतरीन गजल,,,,,,,,,,आ. खुर्शीद जी ,,,,,,बधाई|

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 9, 2015 at 6:12pm
'वाह बहुत खूब ग़ज़ल हुई है सर बधाई स्वीकार करें
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 9, 2015 at 5:05pm

शजर दिल का हिलाती है ग़मों की आँधियाँ जब जब

समर के रूप में ग़ज़लों के मिसरे टूट जाते हैं

न बन यूं कोह चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर

ग़मों के बोझ से तो अच्छे अच्छे टूट जाते हैं

 ...हेर शेर उम्दा है पर ये दो मुझे बेहद पसंद आये ...आपकी इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..आदरणीय खुर्शीद जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 9, 2015 at 4:50pm

आदरणीय खुर्शीद भाई , मतले से मक्ते तक सभी अश आर बेहतरीन कहे हैं , पूरी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by दिनेश कुमार on January 9, 2015 at 4:26pm
क्या बात है ....!! Bahut bahut acchhi gazal hui hai Khurshid sahab....waaah
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 9, 2015 at 4:12pm

बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो

ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं

 

किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी

करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं

 

तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं ज़र्रे

अगर गर्दिश में हो तारे सितारे टूट जाते हैं

 

चमन में बेटियों के वालिदों सा हाल है इनका

उठाकर तितलियों का भार पौधे टूट जाते हैं

 

 

बग़ावत के फ़िसोसे सूझते हैं पेट भरने पr

अगर करने पड़े फ़ाक़े इरादे  टूट जाते हैं

 

न बन यूं कोह चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर

ग़मों के बोझ से तो अच्छे अच्छे टूट जाते हैं

     - behtareen ashaar se labrej , kya baat hai  !

 

सवेरा इसलिये ‘खुरशीद’ फिर लेकर चला आया

मुसल्सल तीरगी हो तो फ़रिश्ते टूट जाते हैं

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2015 at 1:16pm
बहुत ही सुन्दर , बधाई इस प्रस्तुति के लिए आदरणीय.................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service