For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - जी रहा इंसान था वो मर गया क्या ? ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122     2122 

खूब बोला ख़ुद के हक़ में, कुछ हुआ क्या ?

तर्क भीतर तक तुझे ख़ुद धो सका क्या ?

 

खूब तड़पा , खूब आँसू भी बहाया

देखना तो कोई पत्थर नम हुआ क्या ?

 

मिन्नतें क्या काम आई पर्वतों से

तेरी ख़ातिर वो कभी थोड़ा झुका क्या ?

 

जब बहलना है हमें फिर सोचना क्यों

जो बजायें, साज क्या है, झुनझुना क्या ?

 

लोग सुन्दर लग रहे थे मुस्कुराते

वो भी हँस पाते अगर, इसमें बुरा क्या ?

 

सरसराती इन हवाओं से फ़साना  

भर के सीने में हवा, तुमने सुना क्या ?

 

मैने यादों को मनाया था बहुत कल

देखता हूँ उनका आना अब रुका क्या ?

 

ख़्वाब मुझको तीर, ख़ंजर, बम के आये

जी रहा इंसान था वो मर गया क्या ?

 

जब नुक़ूशे शक़्ल सब कुछ बोलते हैं --      शक़्ल में उभरी रेखायें

फिर ख़मोशी क्या किसी की, बोलना क्या ?

 

मेरा घर शीशे का है , सब कुछ अयाँ है   -     ज़ाहिर , प्रकट 

दर किसी के वास्ते अब खोलना क़्या ?

*************************************

मौलिक  एवँ अप्रकाशित

 

Views: 989

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 29, 2014 at 5:27pm

खूब तड़पा , खूब आँसू भी बहाया

देखना तो कोई पत्थर नम हुआ क्या...पत्थर है तो शायद हो भी जाए पत्थर दिल होता तो सवाल ही नहीं था 

सरसराती इन हवाओं से फ़साना  

भर के सीने में हवा, तुमने सुना क्या ?...बहतु ही शानदार रचना ढेरो बधाई स्वीकार करें 

जब नुक़ूशे शक़्ल सब कुछ बोलते हैं --      

फिर ख़मोशी क्या किसी की, बोलना क्या..क्या बात है l

Comment by khursheed khairadi on December 29, 2014 at 3:38pm

जब नुक़ूशे शक़्ल सब कुछ बोलते हैं --      शक़्ल में उभरी रेखायें

फिर ख़मोशी क्या किसी की, बोलना क्या ?

 

मेरा घर शीशे का है , सब कुछ अयाँ है   -     ज़ाहिर , प्रकट 

दर किसी के वास्ते अब खोलना क़्या ?

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है |कोट किये गए अशहार तो लासानी और लाफ़ानी है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 29, 2014 at 1:34pm

क्या कहने आदरणीय गिरिराज भाई साहब, एक एक शेर नगीना की तरह है, बहुत बढ़िया, अच्छी ग़ज़ल हुई है, दिल से बधाई प्रेषित करता हूँ .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 29, 2014 at 12:11pm

मेरा घर शीशे का है , सब कुछ अयाँ है
दर किसी के वास्ते अब खोलना क़्या ?.......बहुत खूब

 गजल पर ,बहुत-२ बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 29, 2014 at 11:47am

आदरणीय राहुल भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 29, 2014 at 11:47am

आदरणीय मिथिलेश भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया ! सलाह उचित है , परिवर्तन  कर लूंगा । मै दर असल ऊपर से शे र एक वचन मे ही कहा हूँ , इसी लिये इसे भी एक वचन मे कहा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 29, 2014 at 11:43am

आदरणीय श्याम नारायन भाई , सराहना के लिये आपका बहुत आभार ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on December 29, 2014 at 11:22am
मेरा घर शीशे का है , सब कुछ अयाँ है - ज़ाहिर , प्रकट
दर किसी के वास्ते अब खोलना क़्या ?

वाह वाह आदरणीय ! बहुत सुन्दर गजल!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 29, 2014 at 11:22am
आदरणीय गिरिराज सर इस उम्दा ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कुबूल फ़रमाये। यदि आपको उचित लगे तो इन दो मिसरों में इस तरह कर सकते है
खूब आंसू भी बहाया को 'बहाए'
सरसराती इन हवाओं से फ़साना को 'फ़साने'
Comment by Shyam Narain Verma on December 29, 2014 at 10:16am

बेहद उम्दा हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service