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एक धरा है एक गगन है

एक धरा है एक गगन है

किंतु विभाजित अपना मन है

 

मीत किसी का ख़ाक बनेगा

उसकी ख़ुद से ही अनबन है

 

याद तुम्हारी महकाये मन

इस सहरा में इक गुलशन है

 

स्वर्ग तिहारे चरणों की रज

मातृधरा तुझको वंदन है

 

चौक बड़ा सा एक चबूतर

यादों में कच्चा आँगन है

 

नहीं बहलता खुशियों से मन

ग़म से अपना अपनापन है

 

आँसू बाती आँखें दीपक

दुख की लौ में सुख रोशन है

 

घाव दिये हैं जिनने दिल को

उनका दिल से अभिनन्दन है

 

रोजाना ढूँढू जिसमें ख़ुद को

माज़ी वो धुँधला दर्पण है

.

मौलिक व अप्रकाशित 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2014 at 9:16pm

आदरणीय खुर्शीद खैराड़ी जी बहुत सुंदर ग़ज़ल है। हर शेर मानीखेज़ है बहुत बहुत बधाई आपको। 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2014 at 8:56pm

//मीत किसी का ख़ाक बनेगा

उसकी ख़ुद से ही अनबन है//

आहा ! क्या खुबसूरत ख्याल हैं, बहुत ही प्यारी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय खुर्शीद खैराडी जी . 

Comment by Chhaya Shukla on December 23, 2014 at 8:45pm

एक अच्छे भाव का वहन करती सुंदर रचना की बधाई आपको सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 7:41pm
आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल है बस आखिरी शेर का मिसरा देख लीजियेगा।
Comment by somesh kumar on December 23, 2014 at 7:36pm

मीत किसी का ख़ाक बनेगा

उसकी ख़ुद से ही अनबन है

 

याद तुम्हारी महकाये मन

इस सहरा में इक गुलशन है

आँसू बाती आँखें दीपक

दुख की लौ में सुख रोशन है

 

घाव दिये हैं जिनने दिल को

उनका दिल से अभिनन्दन है

 सुंदर भाव उसमें से मेरा चुनाव ,बधाई भाई जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 23, 2014 at 7:17pm
घाव दिए है जिसने दिल को
उसका दिल से अभिनन्दन है
बेहतरीन ग़ज़ल का उम्दा शेर। आपको बहुत बहुत बधाई।
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 23, 2014 at 6:27pm

मीत किसी का ख़ाक बनेगा

उसकी ख़ुद से ही अनबन है

वाह बहुत खूब सर जी सभी अशआर बहुत पसंद आये बधाई ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 23, 2014 at 6:11pm
नहीं बहलता खुशियों से मन
ग़म से अपना अपनापन है
घाव दिये हैं जिनने दिल को
उनका दिल से अभिनन्दन है।
बहुत सुन्दर, बहुत बहुत बधाई, आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी, सादर।
Comment by Anurag Singh "rishi" on December 23, 2014 at 5:19pm
वाह बेहद खूबसूरत रचना
सादर बधाई
Comment by Hari Prakash Dubey on December 23, 2014 at 5:04pm

आदरणीय खुर्शीद जी बहुत ही सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई !

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