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"थोड़ी अपनी ही ज़वानी कहो"

बच्चे सोयें वो कहानी कहो।
थोड़ी अपनी ही जवानी कहो।।

बुढ़ापे का ज़ख्म अब रफ़ू करो।
आँसुओं को फिर से पानी कहो।।

ये शहर रौशन नहीं वर्षों से।
इक शाम ही सही सुहानी कहो।।

मोहब्बत का महकता ख़त रहा।
कभी बातें वही पुरानी कहो।।

बहुत ख़त लिखे बहुत ख़त पढ़े।
अब दिल की बातें जबानी कहो।।
**********************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक। अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 6, 2014 at 8:02am

बहुत सुंदर गजल, आदरणीय राम भाई. हार्दिक बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 5, 2014 at 4:10pm


 मोहब्बत का महकता ख़त रहा।
कभी बातें वही पुरानी कहो।।

बहुत ख़त लिखे बहुत ख़त पढ़े।
अब दिल की बातें जबानी कहो।।------------ बेहतरीन i बधाई i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2014 at 11:46am

बहुत ख़त लिखे बहुत ख़त पढ़े
अब दिल की बातें जबानी कहो ..... बढिया शेअर और  ग़ज़ल के लिये बधाइयाँ , आ. राम भाई ।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 4, 2014 at 12:28pm

सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई श्री राम शिरोमणि जी 

Comment by ram shiromani pathak on November 4, 2014 at 9:15am
आदरणीय योगराज सर अमूल्य सुझाव हेतु हार्दिक आभार।।
सुधार करके आपको मेसेज करता हूँ।।सादर
Comment by ram shiromani pathak on November 4, 2014 at 9:13am
सोमेस भाई बहुत आभार आपका।सादर

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 11:31am

दूसरे शेअर के ऊला में तक़ाबुल-ए-रदीफैन आ रहा है भाई राम शिरोमणी जी.

Comment by somesh kumar on November 2, 2014 at 9:30pm

अब दिल की बातें जुबानी कहो ,सुंदर ,बधाई रचना हेतु

कृपया ध्यान दे...

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