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मेरे दिल से ये भी न पूछिए, कि जला कहाँ ये बुझा कहाँ,
जो शरर था आग़ था ख़ाक है लगी इसको ऐसी हवा कहाँ.
.

कई संग उठे हैं मेरी तरफ़, कई उँगलियाँ मेरी ओर हैं,  
जो सज़ा मिली है गुनाह की वो गुनाह मैंने किया कहाँ.
.

मेरे लडखडाने की देर है, मुझे मयपरस्त कहेंगे सब,
उन्हें क्या पता मुझे इश्क़ है, कभी जाम मैंने छुआ कहाँ.     
.  

जो ख़ुदा कहे यहीं जम रहूँ, जो इशारा हो अभी चल पडूँ,
ये जो वक़्त है ये घड़ी का है, ये कभी किसी का हुआ कहाँ.   
.

ये सदाएँ हैं मेरी आहों की मेरी ग़ज़लें तेरी अदाएँ हैं,
मेरे आंसुओं की लक़ीरें हैं कोई शेर मुझ से बना कहाँ.  
.

ज़रा पलकों का ये वरक़ हटा, कभी आँखों में भी तो झाँक ले, 
ये क़सीदे हैं तेरी शान में, अभी तू ने इनको पढ़ा कहाँ. 
.

कभी शुहरतो की शराब थी, कभी हुस्न हुस्न तिलिस्म थे,  
मेरी मंज़िलो पे नज़र रही कोई जादू मुझ पे चला कहाँ
.

वो भी सरफिरा मैं भी सरफिरा, वो भी नूर है मैं भी ‘नूर’ हूँ, 
वो भी आईना मैं भी आईना, वो भी खुल के मुझ से मिला कहाँ.  
.
निलेश "नूर"
 

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Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on October 28, 2014 at 4:25pm

waah gazal achchhi lagi ,,,,,,,,, badhai..........

Comment by Shyam Narain Verma on October 28, 2014 at 2:36pm

" सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई   "

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