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पूर्वगाथा ....(विजय निकोर)

पूर्वगाथा

हादसा नया हो न हो

पुरानी चोट से जगह-जगह

दर्द नया

लहर दर्द की, अब दुखी

तब दुखी

कब रुकी

बहती चली गई

मेघ यादों के आँखों में घने

बरसे, बरसे अनमने

तालाब से नदी, सागर

रातों सियाह महासागर बने

कोई नि:सीम अखण्ड विश्वास

तारिकाएँ नभ में कितनी टूटीं

टूटी नहीं किसी के आने की आस

स्नेह की किरणों की उष्मा में बादल

बने फिर घने, फिर बरसे

भीतर सागर समतल

स्मृतिओं से गुँधते-बिंधते

सैकड़ों दिये किसी के नाम के

दर्द के पट्टे पर

हाथ मेरा फिर से जला

हादसा बचपन का, कल का नया लगा।

---------

 --- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 638

Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 10, 2014 at 5:15pm

निकोर जी

आप तो स्वतः पीड़ा की प्रतिमूर्ति हैं i  समय का मरहम नाकाफी है आप-के लिये i दर्दे दिल अब मेरे साथ ही जायेगा i  भगवान् आपका हौसला बढाये i  सादर i  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 10, 2014 at 2:45pm

आदरणीय विजय सर ..मन भावन ह्रदय स्पर्शी इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 9, 2014 at 10:32pm

आदरणीय विजय निकोर सर बहुत सुन्दर रचना हुई है। हृदय को छूने वाली इस रचना के लिये बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 9, 2014 at 3:05pm
स्मृतियाँ हैं जो छोड़ती नहीं हैं साथ
टूटी नहीं किसी के आने की आस ॥
स्मृतियों से जुड़े रहना जीवन और जीवंतता का परिचायक है .
बहुत बहुत बधाई आदरणीय विजय निकोर जी " पूर्व गाथा " .

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