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ग़ज़ल - सुलभ अग्निहोत्री

सर दाँव पे लगा के अब खेल खेल देखें ।
अपना नसीब देखें, उनकी गुलेल देखें ।

शायद उठे भड़क ही कोई दबी चिंगारी
चल राख हौसलों की परतें उधेल देखें ।

चेहरे सफ़ेद सबको कमज़ोर कर रहे हैं
इन बूढ़े नायकों को पीछे धकेल देखें ।

उद्दंड अश्व खाईं की ओर जा रहे हैं
हाथों में अपने लेकर इनकी नकेल देखें ।।

क्या सूखते दरख्तों का हाल पूछते हैं
हर ओर सर उठाये है अमरबेल देखें ।।

मौलिक व अप्रकाशित

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 3, 2014 at 3:43pm

//सर दाँव पे लगा के अब खेल खेल देखें ।
अपना नसीब देखें, उनकी गुलेल देखें ।// क्या गज़ब का मतला है "खेल-खेल" यहाँ कमल कर रहा है।

//शायद उठे भड़क ही कोई दबी चिंगारी
चल राख हौसलों की परतें उधेल देखें ।// बहुत ही आला और आशावादी ख्याल।

//चेहरे सफ़ेद सबको कमज़ोर कर रहे हैं
इन बूढ़े नायकों को पीछे धकेल देखें ।// क्या कहने हैं।

//उद्दंड अश्व खाईं की ओर जा रहे हैं
हाथों में अपने लेकर इनकी नकेल देखें ।।// बहुत प्रभावशाली शेअर हुआ है , एक सार्थक सन्देश देता हुआ - वाह वाह वाह !!

//क्या सूखते दरख्तों का हाल पूछते हैं
हर ओर सर उठाये है अमरबेल देखें ।।// भाव स्तुत्य हैं !! मगर अमरबेल (२१२१) न चाहते हुए भी बदमज़गी पैदा कर गई आ० सुलभ अग्निहोत्री जी.

Comment by Sulabh Agnihotri on September 16, 2014 at 3:28pm

बहुत-बहुत आभार भाई जवाहर लाल जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on September 16, 2014 at 3:27pm

आदरणीय चन्द्रशेखर पाण्डेय जी !
आप हमेशा की तरह सही हैं। अमरबेल को मैंने गलत वजन में ही बांधा है - 2121
मित्र ! जो मैं कहना चाहता हूँ उसके लिए मेरे पास अमरबेल का स्थानापन्न कोई दूसरा शब्द नहीं है - अतः भाव को प्रधानता देते हुए यह किया गया है।

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 12, 2014 at 12:31am

आदरणीय बढ़िया ग़ज़ल हुई है बधाई 

क्या सूखते दरख्तों का हाल पूछते हैं
हर ओर सर उठाये है अमरबेल देखें ।।

दूसरे मिसरे मे //अमरबेल// को किस वज़न मे बांधा गया है समझ नहीं आया, कृपया प्रकाश डालें। सादर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 11, 2014 at 6:00pm

क्या सूखते दरख्तों का हाल पूछते हैं
हर ओर सर उठाये है अमरबेल देखें ।।

अनूठा ...बढ़िया...

Comment by Sulabh Agnihotri on September 11, 2014 at 2:57pm

धन्यवाद गिरिराज भंडारी जी !

Comment by Sulabh Agnihotri on September 11, 2014 at 2:57pm

धन्यवाद निलेश जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 9, 2014 at 9:15pm

बढ़िया ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ | आ. सुलभ जी |

Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 9, 2014 at 11:29am

बहुत खूब वाह वाह 

Comment by Sulabh Agnihotri on September 8, 2014 at 7:30pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव आपके अनुग्रह के लिए अभारी हूँ.

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