For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुवत्स ने पिता को देखा जिनके दोनों नाक में आक्सीजन  की नली लगी थी I अगर स्वस्थ होते तो आज ही के दिन उन्हें रिटायर होना था I उसे डाक्टर के शब्द याद आये –‘कुछ बचा नहीं, ज्यादा से ज्यादा दो दिन, बस I’ बेटे ने सोचा अगर आज कैजुअलिटी न हुयी तो मुफ्त की नौकरी तो जायेगी ही, बीमा अदि का पूरा पैसा भी नहीं मिलेगा ---- I

उसने चोर-दृष्टि से इधर –उधर देखा I आस-पास कोई न था I अचानक आगे बढ़कर उसने एक नाक से नली हटा दी I फिर वह दबे पांव कमरे से बाहर निकल गया और कारीडोर में रिश्तेदारों के बीच बैठी अपनी माँ के पास जाकर उनकी पीठ पर सर रख रोने लगा I माँ ने कहा –‘मत रो बेटा ! तू  ही तो हमारा सहारा है I ’

 

[मौलिक व् अप्रकाशित ]                  

Views: 816

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on August 2, 2014 at 3:41pm

उफ्फ्फ ...............ऐसा भी हो सकता है ????  सोचा भी नही जा रहा है ...................

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on August 2, 2014 at 2:07pm

आदरणीय गोपाल भाई जी,

लगाया पौधा गुलाब का , पर खिला धतूरा फूल । 

फुर्सत से स्वर्ग में सोच रहा, कहाँ हो गई भूल ॥

वैसे जमाना  धूर्त  लोगों  का  ही है,  वर्तमान सामाजिक , राजनैतिक व्यवस्था में कोई शरीफ ज्यादा दिन जी नहीं पाएगा । जो  किया वह परिवार के भविष्य को ध्यान  में रखकर  ही किया।  इस कलियुग में ऐसे लोग भी स्वर्ग के अधिकारी हैं। 

हार्दिक बधाई गोपाल भाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 1, 2014 at 9:25pm

उफ्फ्फ पढना भी गवारा नहीं हो रहा है सोचना तो दूर ,ऐसे कुपूत भी हो सकते हैं दुनिया में ??किन्तु उत्तर खुद ही मिल जाता है हाँ आज के दौर में सब कुछ हो रहा है रोज अखबार में एसा पढने को मिल जाएगा|बहुत उम्दा सार्थक लघुकथा जो सीधे दिल पर वार करती है |बहुत- बहुत बधाई आपको आ० गोपाल जी  

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 1, 2014 at 9:04pm

आ0 गोपाल भाई जी,   प्रणाम! .......उच्च शिक्षा के बावजूद बेरोजगारी की समस्या और उस पर समाज के एफ0डी0आई0 तेवर.....मरता क्या न करता।  यह समाज का आईना ही है।....आखिर एक मां का सहारा बेटा ही तो होता है। बहुत-बहुत बधाई। सादर,

Comment by Shubhranshu Pandey on August 1, 2014 at 6:24pm

आदरणीय गोपाल नारायण् जी, 

सुन्दर कथा.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 1, 2014 at 3:22pm

उफ़ उफ़ उफ़ ... ऐसा बेटा! 

क्या अंतरात्मा होती ही नहीं... 

कैसा छद्म रूप.... एक ओर ऑक्सीजन की नाली इकालना तो दूसरे ही क्षण माँ के कंधे पर सर रख रोने का ढोंग 

क्या सहारा होगा ऐसा कपूत....

आज के सामज में बुनियादी रिश्तों की विद्रूपता को चीत्कारते हुए प्रस्तुत करती है यह लघुकथा.

बहुत सशक्त प्रस्तुति.

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by seemahari sharma on August 1, 2014 at 2:48pm
बहुत भावुक कहानी ऐसा भी होता होगा
Comment by विनय कुमार on August 1, 2014 at 1:27pm

बहुत संवेदनशील विषय , सच में आजकल ऐसे पुत्र दिख ही जाते हैं , बधाई इस लघुकथा के लिए..

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 1, 2014 at 12:53pm
दुखद: वृत्तांत, शायद बहुत ही दुखद . कहानी के लिए बधाई .
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2014 at 12:15pm

कुपुत्रों जाए ----माता कुमाता न भवति | फिर भी तो आशर्वाद ही देती है माँ | नौकरी का स्वार्थ ऐसा था कि पिताजी की पुत्र ने 

एक तो दिन पहले ही "ह्त्या" करदी | मार्मिक लघु रचना सुन्दर और सार्थक बन पड़ी है | हार्दिक बधाई डॉ गोपाल नारायण जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service