For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - - ' ज़िन्दगी क्यूँ है उधारी सी ' ( गिरिराज भंडारी )

2122      2122        2

कुछ  परायी  कुछ  हमारी  सी

ज़िन्दगी  क्यूँ   है  उधारी  सी

 

अश्क़ों की  नदियाँ  थमीं तो  हैं

सिसकियाँ अब तक हैं जारी सी

 

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी

 

बदलियों के सामने  क्यों  धूप

हो  रही  है  इक  भिखारी  सी

 

आसमाँ रोया  बहुत  था  कल

आज  सूरत  है  निखारी  सी

 

हर तरफ़  घायल हुआ हूँ   मै

बात  शायद   थी  दुधारी  सी

 

बेक़रारी   दिल   में   तारी  है

इक ग़ज़ल हो जाये प्यारी  सी

*****************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

 

Views: 742

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 10:07am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 10:06am

आदरणीय विजय भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका  तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 10:05am

आदरणीया कल्पना जी,  आपकी सराहना  के लिये आपका तहे दिल से आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 7, 2014 at 10:03am

आदरणीय बड़े भाई  गोपाल जी , आपके स्नेह सिक्त आशीषों के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 7, 2014 at 9:20am

कुछ  परायी  कुछ  हमारी  सी

ज़िन्दगी  क्यूँ   है  उधारी  सी..........वाह! बहुत लाजवाब मतला

 

लोग कहते हैं  कि  जी ली, पर

ज़िन्दगी  लगती   गुजारी  सी............बहुत उम्दा शेर हुआ

नमन सर जी, बहुत ही कमाल की गजल कही आपने. तहे दिल से बधाई आपको

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 7, 2014 at 8:28am
लोग कहते हैं कि जी ली, पर
ज़िन्दगी लगती गुजारी सी
बहुत खूब , आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , बधाई .
Comment by कल्पना रामानी on July 6, 2014 at 10:30pm

वाह,वाह! निहायत खूबसूरत गजल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 6, 2014 at 6:39pm

सुभान अल्लाह  i क्या उम्दा गजल है i आख़िरी शेर ने तो जान ही निकाल ली i  मै  मित्र आपका एहतराम करता हूँ  i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service