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माँ, बहन, बेटी के आँसू

 

माँ, बहन, बेटी के आँसू पे यहाँ रोता है दिल

रोज़ लुटती अस्मतें, क़त्लों का ग़म ढोता है दिल |

 

आबरू को उम्रदारों ने भी बदसूरत किया

मर्दों का बचपन भी है बदकार बद होता है दिल |

 

शाहो-साहब औ’ गँवारों सब में बद शह्वानीयत  

सब की आँखों में चढ़ा शर्मो-हया खोता है दिल |

 

है हुक़ूमत बेअसर बेख़ौफ़ हैं ज़ुल्मो-ज़बर  

हर घड़ी हर साँस जैसे ख़ार पे सोता है दिल |

 

आज भी शै की तरह हैं घर या बाहर औरतें

बेरहम इंसाफ़ भी तेज़ाब से धोता है दिल |

 

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

-- संतलाल करुण 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2014 at 1:10pm

उम्दा गजल रचना हुई है -

आज भी शै की तरह हैं घर या बाहर औरतें

बेरहम इंसाफ़ भी तेज़ाब से धोता है दिल |-----वाह ! वाह ! बहुत खूब 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2014 at 12:01pm

आज भी शै की तरह हैं घर या बाहर औरतें

बेरहम इंसाफ़ भी तेज़ाब से धोता है दिल |

एक सुन्दर ग़ज़ल के बेहतरीन शेर के लिए ढेरों बधाई आ० संतलाल जी l

Comment by mrs manjari pandey on July 3, 2014 at 8:25pm
आदरणीय सर बहुत ही सामयिक सोच को दर्शाती सुन्दर ग़ज़ल। बहुत बहुत बधाई सर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 3, 2014 at 7:34pm

आदरनीय  बहुत ही सुन्दर गजल कही आपने i बहुत बहुत स्वागत i

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