For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : खोटा सिक्का (गणेश जी बागी)

                       "अजी सुनती हो! देख लो तुम्हारे लाड़ले की करतूत, सेकंड इयर का रिज़ल्ट आया है, खीँच खांच के पास हुए हैं जनाब,  दिनभर दोस्तो के साथ मटरगश्ती और मारपीट करते रहते हैं, अब तो बर्दाश्त से बाहर हो गया है |"

                        "अब जाने भी दीजिए जी, बच्चा है, थोड़ी-बहुत ग़लतियाँ तो हो ही जाती हैं, आपको पता है,  बिटिया बता रही थी कि भाई के कारण ही कॉलेज मे कोई उसकी तरफ आँख उठाकर देखने की हिम्मत नहीं करता।"


(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट =>चलन

Views: 1269

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 3, 2014 at 3:16pm
आदरणीय बागी जी ..बहिनों की हिफाजत के लिए भाई को अपना करियर कुर्वान करना पड रहा है ..मैं सन्देश को महसूस कर रहा हूँ वर्तमान परिवेश में चिंतन के लिए प्रेरित करती इस शानदार लघु कथा के लिए सादर बधाई ..
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2014 at 8:48am

बेटियों की देश में असुरक्षा को लेकर जो चिंताएं सता रही है, उसकी चिंता के आगे बेटे का पढ़ाई में कम रुझान भी बर्दाश करने 

की मज़बूरी दर्शाती सुन्दर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई श्री गणेश जी "बागी" जी 

Comment by Shubhranshu Pandey on July 2, 2014 at 9:52pm

आदरणीय गणेश भईया. 

सुन्दर कथा...पिता हमेशा से अपने पुत्र को शिक्षा और व्यवहार में आगे बढ़ते हुये देखना चाहता है. माँ अपने पुत्र को दमदार देखना चाहती है. ये एक बेसिक अन्तर है जिसके कारण माता अपने पुत्र की हठधर्मिता को अनदेखा करती है...

राजेश कुमारी जी ने कथा को बिन्दुवत् विस्तार दे दिया है..जिसमें सारी बाते आ गयीं हैं..

सादर.

 

Comment by savitamishra on July 2, 2014 at 9:16pm

बहुत बढ़िया ...दुर्गुणों की बाढ़ में एक दुर्गुण यह भी जो किसी के लिए भला भी बन गया 

Comment by Priyanka singh on July 2, 2014 at 5:11pm

अच्छी लघु कथा .....आपको हार्दिक बधाई।

Comment by वेदिका on July 2, 2014 at 11:02am
वाह! बहुत खूब है ये पुत्र मोह भी। जिसकी पट्टी आँखों पर होने से सपूत जी के दुर्गुण तो नहीं नजर आते, पर गुण नही होने पर भी नजर आ जाते है। बधाई आ0 बागी जी!!
Comment by vijay nikore on July 1, 2014 at 4:16pm

लघुकथा अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 1, 2014 at 10:19am

आदरणीय गणेश भाई , महाभारत सीरियल मे जब अर्जुन एक तीर चलाता था , आकाश मे पहुँच कर कई तीरों मे बंट जाता था , और कई शत्रु उसके निशाने मे आ जाते थे एक साथ , बस  वैसे ही आपकी ये लघु कथा लगी , समाज की कई बुराइयाँ एक साथ घायल हैं ।आपको मेरी दिली बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2014 at 9:56am

एक तीर से चार -चार शिकार , कोटि कोटि नमन आ० गणेश भाई जी ,


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 1, 2014 at 9:02am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, लघुकथा पर आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी पढ़कर मन मुग्ध है, लघुकथा में निहित एक-एक तत्वों की व्याख्या आपकी पैनी दृष्टि का परिचायक है, बहुत बहुत आभार आदरणीया । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service