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“देखो नेहा वो अभी भी घूर रहा है” झूमू ने नेहा का हाथ पकड़े-पकड़े हर की पौढ़ी पर  गंगा में डुबकी लगाते हुए कहा|”बहुत बेशर्म है अभी भी बैठा है इसको पता नहीं किस से पाला  पड़ा है, इसका मजनू पना अभी उतारते हैं शोर मचाकर” उसको थप्पड़ दिखाती हुई नेहा आस पास के लोगों को उकसाने लगी|

इसी बीच में न जाने कब झूमू का हाथ छूट गया और वो तीव्र बहाव में बहने लगी|छपाक!!!!! आवाज आई और कुछ ही देर में वो युवक झूमू को बचाकर बाहर निकाल लाया|

थोड़ी दूर  खड़ा एक पुलिस वाला भी आ गया और  “बोला इन साहब का शुक्रिया अदा करो ये इंटरनेश्नल स्वीमर चेम्पियन स्वप्निल झा जी  हैं जो हरिद्वार घूमने आये हुए हैं  और  निःस्वार्थ एक हफ्ते  से लोगों की हेल्प कर रहे हैं न जाने कितने डूबते हुए  लोगों को बचा चुके हैं”

अपलक देखती नेहा को वो युवक  बोला “ मैडम अपनी आँखों से  ये चश्मा उतारिये जो सिर्फ एक ही रंग देखता है  दुनिया में और भी रंग हैं” !!!!  

मौलिक और अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2014 at 8:32pm

प्रिय महिमा श्री जी ,आपको लघुकथा के मर्म ने प्रभावित किया तो मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2014 at 8:30pm

अभिनव अरुण जी ,आपकी प्रतिक्रिया से बहुत सुकून पँहुचा कि ये लघुकथा अपने मकसद में कामयाब हुई ,ह्रदय तल से आभार आपका |

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 7:01pm
रोचक ,
बधाई , सादर .
Comment by mrs manjari pandey on June 22, 2014 at 7:01pm
आदरणीया राजेश जी. प्रेरणादायक लघुकथा पढ़ कर अच्छा लगा. हार्दिक बधाई आपको.
Comment by MAHIMA SHREE on June 22, 2014 at 6:53pm

आदरणीया राजेश दी सिक्के के दुसरे पहलु को हम अक्सर नजरंदाज कर देते हैं जीवन में कई  नकरात्मक घटनाएँ हमारी सोच को छोटा कर देती है ..और हम उसी सोच को हर जगह लागु करने लगते हैं .. आपकी लघु कथा ने बहुत ही सुंदर तरीके से उस सोच से पर्दा हटाया है .. बहुत -२ हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Abhinav Arun on June 22, 2014 at 6:45pm
अरसे बाद एक सकारात्मक रचना पढने को मिली , सशक्त और आँख खोलने वाली रचना , हार्दिक साधुवाद , बधाई आदरणीया !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2014 at 3:28pm

प्रिय गीतिका जी ,सच कहा आपने कभी- कभी हमारी सोच एक जगह पर टिक जाती है और वही देखना समझना चाहते हैं जो दिमाग में है बस इसी सोच से रूबरू कराया है ,आपको कहानी पसंद आई बहुत बहुत शुक्रिया |

Comment by वेदिका on June 22, 2014 at 3:24pm
जो दिखता है वो होता नहीं, ठीक वैसे ही जो होता है वो होता नही। बेहद ख़ूबसूरती से आपने नक्लियत का पर्दा उतारा है।
बधाई आ0 राजेश दीदी!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2014 at 3:05pm

आ० डॉ गोपाल नारायण जी ,आपको लघुकथा पसंद आई इसके निहित मर्म ने आपको छुआ मेरा लिखना सार्थक हुआ हार्दिक शुक्रिया आपका .सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 22, 2014 at 1:35pm

महनीया

कभी कभी सत्य वह नहीं होता जो हम सोचते है i  बहुत  सुन्दर लघु कथा  i  आपको बधाई i

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