For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों घूंघट में है सच?
क्योंकि तुमने प्रयास नहीं किया
कभी इस और ध्यान नहीं दिया.
उलझे रहे जीवन के उहापोह में
परायों के दोष अपनों के मोह में.
अगर तुमने हिम्मत दिखाई होती
कभी अपनी अंतरात्मा जगाई होती.
देखा होता उठाकर तुमने घूंघट,
ख़ुशी भरा होता आँगन खचाखच.

डॉ.विजय प्रकाश शर्मा.
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 1, 2014 at 11:32am

आदरणीय विजय शर्मा जी,

मेरे कहे को आपने मान दिया और मेरे इंगित पर अपनी बात रखी... इस सहयोग के लिए हार्दिक आभार 

मेरा सिर्फ इतना ही कहना है...की कोइ भी सजग पाठक रचना को शब्दशः ही पढता है और भाव को ग्रहण करने का प्रयास करता है... और जिस पाठक को सरसरी निगाह से बिना चिंतन मनन किये अभिव्यक्तियों से गुज़रना है वो शाब्दिकता की ही वाह वाह कर निकल जाते हैं बिना चिंतन मनन किये...

वैसे आपके सोचने का अपना आधार है जो कुछ हद तक आम पाठक जन की दृष्टि से शायद उचित भी है...

सादर 

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 30, 2014 at 10:12pm

आ० प्राची जी,
पहले मैं आपका अभिनंदन करता हूँ,आपने इतनी बारीकी से रचना को देखा.
वैसे इसे पुन्रक्ति दोष माना जाता है परंतु मेरी सोंच थोड़ी अलग है. किसी महत्वपूर्ण प्रश्न को एक बार पूछने पर पाठक ध्यान ना दे कर अपने रवो में आगे बढ़ जाता है. बात के ख़त्म होने पर अगर प्रश्न को फिर खड़ा कर दिया जाए तो वो थोड़ी देर ठहर कर अवश्य चिंतन करेगा,यही प्रश्न की सार्थकता का क्षण होगा, बस यही समझ इसके पीछे है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 30, 2014 at 7:45pm

क्यों घूंघट में है सच?

बहुत सार्थक प्रश्न और इसका ज़वाब भी देती सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति..

अंत में पुनः "क्यों घूंघट में है सच?" पंक्ति की पुनरावृत्ति की आवश्यकता मुझे प्रतीत नहीं होती.... क्योंकि यहाँ तक पहुँचते पहुँचते तो प्रश्न उत्तरित हो ही चुका है..... .... आपकी सहमती/असहमति जाना रोचक होगा !

सादर.

Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 23, 2014 at 5:00pm

आभार -आ ० महिमा श्री,आ० शकूर जी, आ० सुशील सरन जी एवं आ० जवाहर जी . आप सबों ने सहारा,अहोभाग्य.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 23, 2014 at 8:13am

वाह बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीय विजय प्रकाश शर्मा सर बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 22, 2014 at 9:23pm

उलझे रहे जीवन के उहापोह में 
परायों के दोष अपनों के मोह में.

अंतर्द्वंद्व को उकेरती सुन्दर रचना , बधाई!

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2014 at 8:24pm

अंतर्द्वंद को दर्शाती सुंदर रचना  .... हार्दिक बधाई आदरणीय 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 22, 2014 at 7:27pm
Respected Vijai Prakash ji ,
Yes sir , that is because of psychic unity of mankind and such incidences confirm it . They confirm that there are others too , who feel the same way , the same pain .
With all my most sincere regards .
Comment by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 22, 2014 at 7:18pm

Dr. Vijai Shanker jee,

Coincidences are due to psychic unity of mankind. Many many thanks for your appreciation.

Comment by MAHIMA SHREE on June 22, 2014 at 6:48pm

बहुत खूब आदरणीय हार्दिक बधाई आपको सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
45 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
52 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
5 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। पंचकल त्रिकल के प्रयोग…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service