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कर्मजली (लघुकथा) रवि प्रभाकर

“अबे ओए,  क्या तू ही दीनू है?” अपने दलबल के साथ अचानक आ धमके थानेदार ने अपनी रौबीली आवाज में पूछा
”जी सरकार मैं ही दीनू हूँ ......”
“क्या यही वो लड़की है जिसके साथ आज जबरदस्ती हुई है?” कोने में सिसकती लड़की की तरफ देखकर थानेदार की आंखों में गुलाबी से डोरे तैरने लगे।
“जी सरकार..........”
“जी सरकार के बच्चे... शिकायत क्यों नहीं की थाने में आकर....”
“जी, वो मुखिया जी ने समझौता..... ”
”देखिए साहिब..... कितने सारे रूपये” कांस्टेबल ने चारपाई की नीचे रखे कनस्तर में से नोट निकालते हुए कहा
“साले...... लड़की से धंधा करवाता है, और बड़े आदमियों को ब्लैकमेल करता है....।”
“नहीं सरकार ..... वो तो ......” दीनू की तो जैसे घिग्गी ही बंध गई।
“कब्जे में ले लो सारे पैसे, और बिठायों छोकरी को जीप में “पूछताछ” के लिए."

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:38pm

उफ़्फ़ !! ऐसे भी लोग है । जीवंत लघु कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई 


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Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 6:23pm

आदरणीय रवि भाई , आज जितनी दर्द नाक स्थिति है उतनी ही दर्दनाक प्रस्तुति है , आपको बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2014 at 11:52am

गरीब के लिए न्याय का मार्ग हर और से अवरुद्ध है . अन्याय का यह चक्रव्यूह न जाने कब टूटेगा  l इस मार्मिक लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई आ० रविप्रभाकर  जी l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 12, 2014 at 10:58am

आसमान से गिरे खजूर में अटके बस यही औकात रह गई है गरीब की किसी भी तरह जीने नहीं देना ,दिल टूटता है ये सब पढ़कर बहुत मार्मिक लघु कथा जो अपनी बात कहने में सक्षम है ,बधाई आपको |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 11, 2014 at 7:12pm

रवी जी

निस्संदेह एक मर्मस्पर्शी  रचना है i

सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 11, 2014 at 5:25pm
गरीब तो हर हल में लुटता है
गरीब कमजोर नहीं , लाचार नहीं
बस उसके लिए कोई व्यवस्था नहीं
उसके लिए तो न्याय भी रंग बदलता है .
व्यवस्था की एक सुन्दर लघु प्रस्तुति के लिए बधाई, प्रिय रवि प्रभाकर जी।

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