For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - कचरों को दबाया जा रहा है ( गिरिराज भन्डारी )

2122     2122     2122     2122

चद्दरों से, सिर्फ़ कचरों को दबाया जा रहा है

साफ सुथरा इस तरह खुद को जताया जा रहा है

 

लूट के लंगोट भी बाज़ार में नंग़ा किये थे

फिर वही लंगोट दे हमको मनाया जा रहा है

 

रोशनी सूरज की सहनी जब हुई मुश्किल उन्हें तो  

देखिये राहू से मिल सूरज छिपाया जा रहा है

 

सभ्यता जिस देश की माँ-बाप की पूजा, वहाँ पर

माँ-पिता के नाम पर अब दिन मनाया जा रहा है

 

ज़िन्दगी क्या मौत क्या हम मुफ़लिसों के वास्ते, अब

क्या बतायें किस तरह खुद को बचाया जा रहा है

 

जिस हक़ीकत को समझ के लोग दानिश मन्द होते

उस हक़ीकत को किताबों से हटाया जा रहा है

मामले वे, पर्वतों से भी अटल लगते हैं उनको

बस बयानी फूँक से देखो उड़ाया जा रहा है

*************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 799

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on April 9, 2014 at 3:09pm
क्या कहिये गजल की तारीफ़ में……… सच पर से सारी झूठी परतें उखाड़ फेंकी
बधाई आ0 गिरिराज जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 9, 2014 at 10:45am

जिस हक़ीकत को समझ के लोग दानिश मन्द होते

उस हक़ीकत को किताबों से हटाया जा रहा है----सच कहा आपने ...उम्दा शेर 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आ० गिरिराज जी बधाई आपको 

 

Comment by Arun Sri on April 8, 2014 at 1:46pm

लूट के लंगोट भी बाज़ार में नंग़ा किये थे

फिर वही लंगोट दे हमको मनाया जा रहा है............. आप भी कहाँ कहाँ घुमा लाए हैं गज़ल को ! ग़ज़लें आवारा हो गई हैं आप जैसो की संगत में आकर ! वर्ना महबूबा की गोद में पड़ी रहती थीं चुप-चाप ! :-))))))))

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 8, 2014 at 1:40pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी उपस्थिति और ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 8, 2014 at 1:39pm

आ. बड़े भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 8, 2014 at 1:38pm

आ. जीतेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 8, 2014 at 1:37pm

आ. सलीम भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥

Comment by vijay nikore on April 8, 2014 at 12:32pm

बेहतरीन गज़ल के लिए बधाई, भाई गिरिराज जी।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 7, 2014 at 12:56pm

छोटे भाई गिरिराज,

गंदी राजनीति ,  शासन  प्रशासन और व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य । हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 7, 2014 at 10:39am

चद्दरों से, सिर्फ़ कचरों को दबाया जा रहा है

साफ सुथरा इस तरह खुद को जताया जा रहा है...........वाह ! बहुत गहरा दृष्टिकोण

रोशनी सूरज की सहनी जब हुई मुश्किल उन्हें तो  

देखिये राहू से मिल सूरज छिपाया जा रहा है...............वाह! बहुत खूब, क्या बात कही है

 

सभ्यता जिस देश की माँ-बाप की पूजा, वहाँ पर

माँ-पिता के नाम पर अब दिन मनाया जा रहा है..............यह सब तो सामयिक फैशन हो गया है| आजकल के बच्चे, माँ-बाप को माता-पिता नही कहेंगे परन्तु पड़ोसियों को अंकल-आंटी जरुर कहेंगे

यथार्थ पर बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीय गिरिराज जी, दिली बधाई स्वीकार करें

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service