For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रात थी लेकिन अँधेरा उतना भी गहरा न था- ग़ज़ल

2122- 2122- 2122- 212

रात थी लेकिन अँधेरा उतना भी गहरा न था

सब दिखाई दे गया आँखो में जो पर्दा न था

 

झूठ की बुनियाद पर कोई महल बनता नहीं

झूठ आखिर झूठ है उसको तो सच होना न था

 

शोर था सारे जहाँ में इक लहर की बात थी

कोई दा'वा उस लहर का अस्ल में सच्चा न था

 

कहने को तो साथ मेरे कारवाँ था लोग थे

मैं वही था हाँ मगर वो दौर पहले सा न था

 

ये सफर गुज़रा बड़े आराम से तो अब तलक

आखिरश रुकना पड़ा मुझको कि अब रस्ता न था

 

आप अपनी हैसियत को लें समझ अब मोहतरम

वो सिकंदर भी झुका था जो कभी हारा न था

 

उँगलियाँ थी नाम थे पहचान थी सबकी मगर

वे सभी बस वोट थे उनका कोई चेहरा न था   

 

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 852

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by coontee mukerji on April 3, 2014 at 4:44pm

आप अपनी हैसियत को लें समझ अब मोहतरम

वो सिकंदर भी झुका था जो कभी हारा न था......वाह बहुत खूब

 

Comment by Shyam Narain Verma on April 3, 2014 at 10:26am
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर.....................

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 3, 2014 at 6:57am

भाई जितेन्द्र जी आपकी मौजूदगी हमेशा ही उत्साहवर्धक होती है रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 3, 2014 at 6:55am

भाई आशीष जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

//टोपी-मफलर वालों को खासा पसंद आएगा// ये टोपी मफलर वालों से ज्यादा गुजरात वालों को मज़ा आयेगा :-)


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 3, 2014 at 6:48am

आदरणीय नादिर भाई रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2014 at 11:22pm

झूठ की बुनियाद पर कोई महल बनता नहीं

झूठ आखिर झूठ है उसको तो सच होना न था............बहुत खूब, कटु -सत्य

शोर था सारे जहाँ में इक लहर की बात थी

कोई दा'वा उस लहर का अस्ल में सच्चा न था...........गजब शेर कहा

लाजवाब गजल कही आपने, एक से बढ़कर एक शेर हुए. दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय शिज्जू जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 2, 2014 at 11:16pm

शोर था सारे जहाँ में इक लहर की बात थी

कोई दा'वा उस लहर का अस्ल में सच्चा न था |   

वाह वाह !! बड़ा सामयिक शेर कह दिया है आपने | टोपी-मफलर वालों को खासा पसंद आएगा |

ये सफर गुज़रा बड़े आराम से तो अब तलक

आखिरश रुकना पड़ा मुझको कि अब रस्ता न था    क्या कहने.. वाह !!

उँगलियाँ थी नाम थे पहचान थी सबकी मगर

वे सभी बस वोट थे उनका कोई चेहरा न था  |     महत्वपूर्ण..

बढ़िया ग़ज़ल पर दाद क़ुबूल करें शिज्जु भाई जी !!

Comment by नादिर ख़ान on April 2, 2014 at 10:43pm

झूठ की बुनियाद पर कोई महल बनता नहीं

झूठ आखिर झूठ है उसको तो सच होना न था..... बहुत सही

 

शोर था सारे जहाँ में इक लहर की बात थी

कोई दा'वा उस लहर का अस्ल में सच्चा न था  ....क्या बात 

आप अपनी हैसियत को लें समझ अब मोहतरम

वो सिकंदर भी झुका था जो कभी हारा न था..... सही है जो पेड़  झुकते नहीं है, अक्सर हवा के झोंको से  टूट जाते है ।

आदरणीय शिज्जु जी समसामयिक विषय पर बहुत ही सार्थक गज़ल कही आपने, ढेरों शुभकामनायें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service