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नवगीत--झील चुप सी.......!

झील चुप सी राह तकती,
नाव डगमग
भाव भर कर
राज सारे पूछती है।

रेत फिसली
तट सॅवर कर,
हाथ पल पल
धो रही नित,
मल घुला जल
विष भरे तन
मीन प्यासी कोसती है।।1


सूर्य किरनों से
पिए नित रक्त
नदियों के बदन का,
धर्म की
पतवार भी अब
तीर सम तन छेदती है।।2


वन-सरोवर
तन उचट कर
छॉंव गिर कर
दूर जाती।
प्रेम का
सम्बन्ध रचकर
सांझ तक मन सोखती हैं।।3


रात सज कर
जब मचलती,
दौर पर तब
दौर चलते
घूस-बलवा
तेल पीकर,
दीप की लौ झूमती है।।4


सिर चढ़ी मय
जिद करे अब
मन उमंगे
वाह! करती
नाचते दंगें
उछल कर
आह! भरती चॉंदनी है।5

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2014 at 7:38pm

आ0  आशीष भाई जी, सादर प्रणाम!  नवगीत पर आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2014 at 7:37pm

आ0 महिमा श्री  जी, सादर प्रणाम!  नवगीत पर आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 2, 2014 at 11:19pm

रात सज कर
जब मचलती,
दौर पर तब
दौर चलते
घूस-बलवा
तेल पीकर,
दीप की लौ झूमती है। 

सुन्दर नवगीत भाई !!

Comment by MAHIMA SHREE on April 2, 2014 at 10:07pm

आदरणीय केवल जी बेहद सुंदर भावयुक्त नवगीत हार्दिक बधाई आपको सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2014 at 8:08pm

आ0  विजय भाई जी,    नवगीत के प्रति स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।    सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2014 at 8:06pm

आ0  विन्ध्येश्वरी भाई जी,   आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।    सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2014 at 8:05pm

आ0 आशुतोष  भाई जी, आपका नवगीत के प्रति लगाव को देख कर मुझे बड़ी खुशी मिली।  आपके स्नेह और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।  भाई जी-  नवगीत पर आ0 डा0 प्राची सिंह जी के लेख नवगीत की विधा पर काफी चर्चा इसी ओ बाी ओ के पटल पर हो चुका है।  जिसे मैं खोज नहीं पाया।  कृपया आप आदरणीया जी अथवा आ0 सौरभ सर जी से नवगीत का लिंक पूॅंछ लीजिए,। आपको तत्काल उपलब्ध हो जाएगा।  सादर,

Comment by विजय मिश्र on April 2, 2014 at 2:32pm
आनन्द उमग पड़ा | सुमधुर प्रवाह लिए एक प्रशंसनीय रचना |बधाई केवल भाई |
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 2, 2014 at 9:45am
भाई केवल प्रसाद जी! बहुत ही सुन्दर नवगीत रचा है आपने। बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2014 at 5:57pm

आदरणीय केवल जी ..बहुत ही मधुर नवगीत ..गुन्गुनानते हुए बेहद आनंद आया ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें .सादर  एक निवेदन भी कर रहा हूँ नव गीत के बिषय में बिस्तार से जान्ने के लिए कोई लिंक हो देने का कष्ट कीजियेगा ..

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