For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : पत्थरों में खौफ़ का मंज़र भरे बैठे हैं हम

एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले ....


पत्थरों में खौफ़ का मंज़र भरे बैठे हैं हम |

आईना हैं, खुद में अब पत्थर भरे बैठे हैं हम |

 

हम अकेले ही सफ़र में चल पड़ें तो फ़िक्र क्या,
अपनी नज़रों में कई लश्कर भेरे बैठे हैं हम |

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |

 

लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले,
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम |

हमने अपनी शख्सियत बाहर से चमकाई मगर,
इक अँधेरा आज भी अन्दर भरे बैठे हैं हम |

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 799

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on December 3, 2014 at 3:20pm

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |

लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले,
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम |
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

Comment by Sushil Sarna on April 25, 2014 at 4:04pm

लाज़वाब और दिलकश ग़ज़ल जिसका हर शेर एक अलग महक से लबरेज़ है  .... हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर  … सर क्षमा करें इस लाईन में ''अपनी नज़रों में कई लश्कर भेरे बैठे हैं हम'' भेरे के स्थान पर भरे होना चाहिए शायद ये टंकण त्रुटि है … शेष इस दिलकश सृजन के लिए हार्दिक बधाई  आदरणीय वीनस जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 3, 2014 at 9:38am

हर एक शेर दिल के करीब लगा 

बहुत बहुत बधाई आ० वीनस जी 

Comment by vandana on March 28, 2014 at 4:33am

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है, 
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |

 

लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले, 
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम |

कमाल की ग़ज़ल है आदरणीय वीनस सर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 3:29am

हर शेर के लिए अलग-अलग दाद कुबूल करें, वीनस भाई.

कहते हैं न, भाव प्रस्तुति सफल वो जो पाठक की अनुभूति का हिस्सा बन जाये. इस हिसाब से ग़ज़ल सफल है, 

शुभ-शुभ

Comment by Sarita Bhatia on March 26, 2014 at 10:41am

आदरणीय वीनस जी ढेरों बधाइयाँ इस लाजवाब गजल के लिए क्या गहरी बात की है 

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,

अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |

 

हमने अपनी शख्सियत बाहर से चमकाई मगर,

इक अँधेरा आज भी अन्दर भरे बैठे हैं हम |

वाह क्या बात 

Comment by भुवन निस्तेज on March 25, 2014 at 11:48pm

लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले, 
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे हैं हम |

आदरणीय वीनस केशरी जी, क्या बात कह दी आपने...

हम जेबों में टाफियां न भरकर दफ्तर भरे बैठे हैं, और खुद दफ्तर की जेबों में भी ठुंसे पड़े है...

आपको बधाइयाँ...

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 25, 2014 at 10:37pm

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम............वाह ! लाजवाब  शेर

बेहतरीन गजल आदरणीय वीनस जी, दिली दाद कुबूल कीजिये

 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 5:26pm

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |
हमने अपनी शख्सियत बाहर से चमकाई मगर,
इक अँधेरा आज भी अन्दर भरे बैठे हैं हम |..आदरणीय वीनस जी ..बहुत दिनों बाद आज आपकी रचना को पढने का मौका मिला ..हमेशा की तरह आज भी बहुत कुछ सीखने को मिला ..आपको सादर बधाई के साथ

Comment by Abhinav Arun on March 25, 2014 at 2:29pm

जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |
…… लाजवाब बेहतरीन सशक्त ग़ज़ल। .......... हार्दिक बधाई आदरणीय !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service