For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- रात इक जुगनू हवा में कुलबुलाता रह गया

रात इक जुगनू हवा में कुलबुलाता रह गया
रौशनी के वास्ते खुद को जलाता रह गया

पेट की मजबूरियां थीं, हम शहर में बस गए
गाँव हमको ख्वाब में वापस बुलाता रह गया

कोठियाँ बेशक मेरे बच्चों ने कर दी हैं खड़ी
पर तुम्हारी याद का उसमें अहाता रह गया

आज मुझको काम से इक रोज की फुर्सत मिली
आज दिनभर लाडला बस मुस्कुराता रह गया

धन की देवी आपके घर क्यों कभी रुकती नहीं
चौक पर बैठा नजूमी ये बताता रह गया

आँख का हर प्रश्न आंसू की सतह में बह गया
और बेटा देश से बाहर कमाता रह गया.
- अनुराग 'अनुभव' ( मौलिक)

Views: 1290

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Anubhav on March 24, 2014 at 8:36am
शुक्रिया शिज्जु शकूर जी, गुमनाम पिथौरागढ़ी जी, राम अवध विश्वकर्मा जी, ओम प्रकाश क्षत्रिय जी, केवल प्रसाद जी, भुवन निस्तेज जी, जीतेन्द्र 'गीत' जी, विजय मिश्र जी, लक्ष्मन धामी जी, गिरिराज भंडारी जी, शशि पुरवर जी, धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी, अजय अज्ञात जी, वीनस केसरी जी, सौरभ पाण्डेय जी और अन्य सभी अग्रज एवं गुरुजनों का धन्यवाद... आभार... अपना आशीर्वाद बनाये रखें....
Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:25am

अच्छी ग़ज़ल कही है अनुराग
यहाँ लोगों ने काफी कुछ कह दिया है .. उनके कहे पर गौर करना जरूरी है

Comment by Ajay Agyat on March 23, 2014 at 3:04pm

bahut umda

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2014 at 2:32pm

अनुराग जी अगर काफिया ठीक कर लें तो अच्छी ग़ज़ल हो जायेगी. बधाई स्वीकार करें 

Comment by shashi purwar on March 22, 2014 at 9:53pm

वाह वाह बहुत सुन्दर गजल है शभी शेर एक एक बढ़कर एक , बहुत गहन बात कही है आपने आदरणीय हार्दिक बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 20, 2014 at 8:03pm

आ. अनुराग भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , आपको बधाइयाँ ॥ आ. केवल भाई जी की बात से मै सहमत हूँ , काफिया मे गडबड़ी लग रही है भाई जी फिर से देख लीजियेगा  ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2014 at 7:20am

भाई अनुराग जी , हर एक शे'र के लिए कोटि कोटि दाद कबूल करें

Comment by विजय मिश्र on March 19, 2014 at 2:44pm
अनुरागजी ,बेशक एक कसक भरी आज के शहर की रुखी बसर को आपने असआरों का शक्ल दिया है ,बहुत उभर कर आया भी है |
"रात इक जुगनू हवा में कुलबुलाता रह गया
रौशनी के वास्ते खुद को जलाता रह गया
पेट की मजबूरियां थीं, हम शहर में बस गए
गाँव हमको ख्वाब में वापस बुलाता रह गया |" कितनी बारीकी से रखा है |बेहतरीन|शुक्रिया |
आखिरी मिसरे का 'सतह ' कहीं 'शकल' तो नहीं है ? ऐसी शंका है , कोई जिरह नहीं |
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 17, 2014 at 11:49pm

लाजवाब गजल कही आपने आदरणीय अनुराग जी, एक से बढ़कर एक शेर .दिली दाद कुबूल कीजिये

पेट की मजबूरियां थीं, हम शहर में बस गए
गाँव हमको ख्वाब में वापस बुलाता रह गया

Comment by भुवन निस्तेज on March 16, 2014 at 11:02pm

अत्यन्त सुन्दर रचना....

आप के अल्फाज़ मेरी रूह में यों  छप गए

और मेरा दिल  गज़ल ये गुनगुनाता रह गया...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश  ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका बहुत शुक्रिया "
20 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"अनुज ब्रिजेश , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका  हार्दिक  आभार "
22 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आ. अजय जी,ग़ज़ल के जानकार का काम ग़ज़ल की तमाम बारीकियां बताने (रदीफ़ -क़ाफ़िया-बह्र से इतर) यह भी है कि…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आदरणीय एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको एक चुप्पी है जो अब तक खल रही…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विविध
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया से सोच को नव चेतना मिली । प्रयास रहेगा…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय बृजेश कुमार जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
3 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"मैं आपके कथन का पूर्ण समर्थन करता हूँ आदरणीय तिलक कपूर जी। आपकी टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"धन्यवाद आ. दयाराम मेठानी जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. बृजेश कुमार जी.५ वें शेर पर स्पष्टीकरण नीचे टिप्पणी में देने का प्रयास किया है. आशा है…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आपकी विस्तृत टिप्पणी से ग़ज़ल कहने का उत्साह बढ़ जाता है.तेरे प्यार में पर आ. समर…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service