For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पीपल की छाँव में खीर खाये एक अरसा हो गया है
मन फिर से चंचल है
तुम आओगी न, सुजाता !

उसके होने न होने से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ना था,
ऐसा तो नहीं कहता
लेकिन क्या वो
कोई आम, अशोक, महुआ या जामुन नहीं हो सकता था
या फिर,
वहीं उगा कोई पुराना छायादार ?
किन्तु, आज तक परित्यक्त !
हम मिथक तो
फिर भी गढ़ लेते !

उस पीपल में कुछ तो होगा
कि, गुजारी रात !
जब कि मैं पिशाच नहीं हूँ
न ब्रह्मराक्षस
मैं ब्राह्मण भी नहीं

किन्तु, अब
एक मुझे ही नहीं
एक पूरे समाज को चाहिये तुम्हारी पकायी खीर
चाहना व्यक्तिगत भले हो
उसकी उपलब्धियाँ सदा से सामाजिक होती हैं / यह सत्य है
पर अब
एक पूरा समाज नहीं सो पा रहा है, मेरी तरह
एक पूरे समाज की जिज्ञासा बलवती हो रही है अब

पूर्णत्व की चाह शारीरिक ही नहीं होती
यह वैचारिक पहलू वस्तुतः अनिवार्यता है
हर जीवित संज्ञा की
लेकिन, इसी के साथ पेट भी तो एक भौतिक सत्य है
जिसकी दासता की अपरिहार्य उपज
इस समाज के चार वर्ण..
आज तक !

मन फिर चंचल है
तुम आओगी न सुजाता !


*****
-सौरभ
*****
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1031

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 28, 2014 at 11:29pm

इस रचना पर अपनी सम्मति और सहमति देने के लिए आप सभी सुधीजनों के प्रति हृदय से आभारी हूँ.

सादर

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on January 28, 2014 at 11:27pm

आदरणीय सौरभ भाईजी,       

इस रचना की ऊँचाई  और भावों की गहराई पर मेरी हार्दिक बधाई॥

धन्यवाद सौरभ भाई, कुछ  यादें  ताज़ा हो गई  

....सादर 

Comment by कल्पना रामानी on January 28, 2014 at 10:56pm

कितनी भावपूर्ण, संवेदनाओं  को झकझोरती हुई कविता है! मैं अल्पज्ञानी हूँ, इस प्रसंग को टैग देखकर पहले सर्च करके पढ़ा समझा फिर कविता की गहराई तक पहुंची।आपका हार्दिक आभार। 

Comment by Neeraj Neer on January 28, 2014 at 7:43pm

बहुत सुन्दर रचना ... पेट की भूख एक शाश्वत सत्य है इसे नकार कर कभी भी ज्ञान तत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती , अब इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह एक वट वृक्ष था या पीपल का :) , इस पूरी कहानी के पीछे का सन्देश बहुत स्पष्ट है कि भूखे भजन ना होई गोपाला ... आज विश्व को वास्तव में सुजाता के खीर की आवश्यकता है .. बधाई आपको .. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 28, 2014 at 6:37pm

आदरणीय सौरभ भाई , सच है, आज के भौतिकता वादी समाज मे,भौतिक लालसाओ को पूर्ण करने के लिये दिन रात दौड़ भाग करते हुये मनुष्यों के लिये उस परम सत्य का प्रकाश ,हर किसी के लिये ज़रूरी है। अन्दर फैलती , पनपती अशांति और असंतुष्टि के असली कारण को आज नही तो कल सभी को खोजना ही पड़ेगा , समझना ही पड़ेगा और परम आनन्द और प्रकाश की ओर् क़दम बढ़ाना  ही पडेगा । आदरणीय , सुन्दर रचाना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Shyam Narain Verma on January 28, 2014 at 12:03pm
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई ....
Comment by Saarthi Baidyanath on January 28, 2014 at 10:57am

अद्भुत सृजन .. अंतस को छूने वाली शब्द संरचना ! मैं क्या टिप्पणी कर सकता हूँ ! बहुत कुछ सीखने को मिलता है एक समर्थ लेखनी को पढ़ने के बाद ! सादर नमन आदरणीय ...सादर प्रणाम !

मन फिर चंचल है 
तुम आओगी न सुजाता ! ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 28, 2014 at 10:49am

पूर्णत्व की चाह शारीरिक ही नहीं होती 
यह वैचारिक पहलू वस्तुतः अनिवार्यता है 
हर जीवित संज्ञा की 
लेकिन,  इसी के साथ पेट भी तो एक भौतिक सत्य है 
जिसकी दासता की अपरिहार्य उपज 
इस समाज के चार वर्ण.. 

आज तक !

मन फिर चंचल है 
तुम आओगी न सुजाता ! -----और यही एक शास्वत सत्य भी है जिससे कोई मुख नहीं मोड़ सकता अस्प्रश्यता ,वर्ण भेद भाव पेट की भूख के समक्ष नत हो जाते हैं फिर वो सुजाता कौन है कहाँ से आई है उससे कोई सरोकार नहीं रहता बल्कि उसकी खीर सबको प्रिय है 

बहुत खूब कविता के माध्यम से खूबसूरत बिम्ब के पीछे एक गंभीर सामाजिक मुद्दे को केन्द्रित किया ढेरों बधाई इस अनुपम कृति के लिए. 

Comment by Sarita Bhatia on January 28, 2014 at 9:57am

वाह आदरणीय अद्भुत अभिव्यक्ति 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 28, 2014 at 8:45am

मन फिर चंचल है 
तुम आओगी न सुजाता !

एक वृहत परिदृश्य को साक्षी भाव से देखती ईकाई.. सामाजिक स्तर पर व्याप्त हैं विकृतियाँ वर्जनाएं वार्णिक अस्पृश्यता या अन्य, पर समाज जैसे खोज रहा है कुछ... मूल में खुशी/आनंद/पूर्णत्व की खोज ही है पर स्थूल चाहना बिलकुल भौतिक.. हाहाकार लिए जैसे सामाजिक इकाइयां भाग रही हैं... चिदानंद खोजती पर भौतिक प्रारूपों की चाह तक ही अटक जातीं, बेचैन.. चाहती हैं एक ठहराव, शान्ति.. जिज्ञासा तो है, पर छटपटाती, सुने-सुनाए तथ्यों को, कथ्यों को टटोलती पर स्थूल में ही आबद्ध हो जाती..पूर्णत्व से / एकत्व से बहुत दूर.. 

वहीं उस एक इकाई की पूर्णत्व की तड़प.. मन की चंचलता को शांत कर एकत्व में लीन हो जाने की प्रबल चाहना.. ज्यों सुजाता के हाथों खीर ग्रहण कर थम गयी सारी चंचलता और एकाग्र हो बन गए सिद्धार्थ बुद्ध.. काश मिल जाएं वो अमृत बूँदें, मन ठहर जाए एक गहनतम शान्ति में, और हो जाए विलीन परिपूर्ण ब्रह्ममय..

वैयक्तिक पूर्णता सच है संसार को भी सुफल देती है सदिश करती है...एक अलग ही ऊंचाई पर ले जाती एक गहनतम अभिव्यक्ति जो बस मन से निकलती गयी और शब्दों में अनायास ही ढल गयी..

अल्पज्ञान के लिए क्षमा :) के साथ ही इस प्रस्तुति के लिए साधुवाद आदरणीय

सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"ब्रजेश जी, आप जो कह रहें हैं सब ठीक है।    पर मुद्दा "कृष्ण" या…"
38 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय शुक्ला जी... लाभ एवं हानि का था लक्ष्य उन के प्रेम मेंअस्तु…"
20 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"उचित है आदरणीय अजय जी ,अतिरंजित तो लग रहा है हालाँकि असंभव सा नहीं है....मेरा तात्पर्य कि…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाईजी, इस प्रस्तुति के मोहपाश में तो हम एक अरसे बँधे थे. हमने अपनी एक यात्रा के दौरान…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,//आदरणीय 'नूर'साहब,  मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार ग़ज़ल का प्रत्येक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आने में मुझे विलम्ब हुआ है. कारण कि, मेरा निवास ही बदल रहा…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. अजय गुप्ता जी "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय अजय अजेय जी,  मेरी चाचीजी के गोलोकवासी हो जाने से मैं अपने पैत्रिक गाँव पर हूँ।…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी,   विश्वासघात के विभिन्न आयामों को आपने शब्द दिये हैं।  आपके…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 180 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"विस्तृत मार्गदर्शन और इतना समय लगाकर सभी विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतू हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी।…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service