For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अचानक एक दिन
हुई उसके बचपन की हत्या
विवाह की वेदी ने दिया
एक नया घर-आँगन
एक नया रोल
एक नया अभिनय
एक नया डर...

अचानक एक दिन
ख़त्म हुई नादानियां
दफन हुईं लापरवाहियां
स्याह हुए स्वप्न
भोथरा गईं कल्पनाएँ....

अचानक एक दिन
उठाना पडा भारी-भरकम
संस्कारों का पिटारा
जिम्मेदारियों का बोझ
मानसिक-शारीरिक तब्दीलियाँ
और शिथिल हुए स्नायु-तंत्र...

दीखता नही दूर-दूर तक
इस मायाजाल से
निकलने का कोई द्वार
सूझता नही कोई समाधान
इसीलिए लिया उसने प्रण
अगली पीढी के साथ
ऐसा नही होने दूंगी....

और फिर खुल-खुल गईं
कई खिड़कियाँ,
संभावनाओं के कई द्वार......

(मौलिक अप्रकाशित)

Views: 395

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 3:52pm

बाल-विवाह के विरोध में आपकी यह कविता आवाज़ तो उठाती है लेकिन सार्थक प्रयास हुआ ऐसा नहीं कहूँगा. 

भाई विजय मिश्रजी के कहे से मैं भी सहमत हूँ.

सादर

Comment by विजय मिश्र on January 9, 2014 at 5:48pm
सुहैल भाई , नया साल मुबारक , कहीं कुछ है आपकी इस रचना में जो बेखटके नीचे नहीं उतर रहा है |पारम्परिक मर्यादाओं से मुक्ति तो तब भी नहीं और अब भी नहीं |संभावनाओं के कपाट खुले किन्तु उन्मुक्त और निरपेक्ष जीवन भी अचानक एकदिन उदासीन हो जाता है |भटकाव के भँवर में फंसाता है | सुंदर और सार्थक रचना केलिए धन्यवाद |
Comment by अरुन 'अनन्त' on January 9, 2014 at 11:44am

आदरणीय अनवर साहब बेहद उम्दा भाव, दर्द से शुरुआत की आपने और अंत जिस सकरात्मक सोच और सन्देश के साथ किया वाह दिल खुश हो गया. बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना पर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 7, 2014 at 9:49pm

आपकी संवेदनशीलता इस रचना में दिखाई दे रही है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by MAHIMA SHREE on January 7, 2014 at 8:42pm

आदरणीय अनवर सर ..इस रचना की भावभूमि के लिए आपका हार्दिक आभार ....ओर आपकी संवेदनशील लेखन के लिए ढ़ेरों बधाईयाँ.....सादर

Comment by coontee mukerji on January 7, 2014 at 8:30pm

बहुत सुन्दर रचना....हार्दिक बधाई.सादर

Comment by Meena Pathak on January 7, 2014 at 2:32pm

दीखता नही दूर-दूर तक 
इस मायाजाल से 
निकलने का कोई द्वार 
सूझता नही कोई समाधान 
इसीलिए लिया उसने प्रण
अगली पीढी के साथ 
ऐसा नही होने दूंगी....

और फिर खुल-खुल गईं 
कई खिड़कियाँ, 
संभावनाओं के कई द्वार......///// सकारात्मक सन्देश देती रचना के लिए बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
4 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service