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प्यार अमर कर जाएगें (गीत)

खाकर इक दूजे की कसम
हम प्यार अमर कर जाएँगे
कोई रोक सके तो रोक ले हमको
हम न जुदा हो पाएँगे
हम बगिया के फूल नहीं
जो हमको कोई ऊज़ाडेगा

हम ने की नही भूल कोई
जो हम को कोई सुधारेगा
लैला मजनूं के बाद अब हम
इतिहास में नाम लिखाएगें
कोई रोक........................

पतझड़ सावन बसंत बहार
ऋीतुएँ होती हैं ये चार
एक भी मौसम नही है ऐसा
जिसमें हम कर सकें न प्यार
बुरी नज़र जो डालेगा उसका
मुह काला कर जाएँगें
कोई.....................
हम......................
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 19, 2013 at 6:57pm

आदरणीय , आत्म विश्वास से भरे प्रेम के लिये आपको हार्दिक बधाई ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 19, 2013 at 10:04am

सुंदर रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2013 at 6:50pm

भाई नीरज जी

आप तो छुपे रुस्तम है i अभी तक कहाँ थे भाई ?  कल्पना की मनोहारी  उडान है i

कोशिश जारी रह्नी  चाहिए i

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2013 at 11:49am
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.....

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