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(1)

आयो मेरे पास आयो

.

देश मेरा उजड़ रहा है
आओ मेरे पास आओ
कितने ही दुख भोग रहा है
आओ मेरे पास आओ
एक तरफ चाकू है चलता
दूसरी तरफ नरसंहार है
आतंकवाद है उससे ऊपर
सबसे ऊपर बलात्कार है
कितनों के दिल तोड़े इसने
घर कितनो के उजाड़े हैं
आँख के तारे छीने इसने
माँग के सिंदूर उजाड़े हैं
पाप की नगरी से डर लगता
आकर मुझको गले लगाओ
तुमसे बिछड़ न जाऊँ कहीं मैं
 आयो मेरे पास आयो

----------------------------------------

(2)

उग्रवाद

पर लग जाते खग से मुझसे
धरा छोड़ उड़ जाता नभ में
जाति पाति का भेद न होता
आपस मे कुछ द्वेश न होता
उग्रवाद का नाम न होता
हथियारों का काम न होता
मानव का फिर लहू न बहता
नीला अम्बर लाल   न होता                             

....................................


मौलिक और अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 26, 2013 at 4:11pm

दोनों कविताओं की भावदशा यथार्थ को प्रस्तुत करती है, सुन्दर है और अंतर गेयता भी प्रभावी है.... पर कथ्य विन्यास और शिल्प दोनों ही और बेहतर हो सकते हैं...और, आओ को आयो क्यों लिखा गया है ?

मंच पर अन्य प्रस्तुतियों को भी पढ़िए..

दोनों ही रचनाओं के लिए बधाई..

Comment by annapurna bajpai on December 23, 2013 at 6:14pm

दोनों ही कवितायें बहुत ही सुंदर बन पड़ी है , दूसरी कविता ज्यादा दमदार है । बधाई आपको दोनों रचनाओं के लिए आ0 नीरज खरे जी । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 1:10pm

आदरणीय नीरज भाई ओ बी ओ पर आपका हार्दिक स्वागत है, दोनों ही कवितायेँ यथार्थ बयां कर रही हैं भाव बहुत ही अच्छा है हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 12:26pm

दोनों कविताएँ बहुत सुन्दर | सादर बधाई आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 20, 2013 at 9:08pm

आदरणीय नीरज भाई , दोनो कविता के भाव बहुत सुन्दर लगे ॥सुन्दर कविताओं के लिये आपको अनेकों बधाइयाँ ॥

Comment by savitamishra on December 20, 2013 at 7:19pm

बहुत सुंदर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2013 at 7:11pm

प्रिय नीरज जी

आपकी दो कविताये पढी i सचमुच आप परिपक्व हो गए है i  दूसरी कविता की धार बहुत पैनी है i आप इस तरह लिखेंगे तो मुझे  गर्व होगा i बहुत बहुरत बधाई  i

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