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बर्फ देखो 
पिघलने लगी 
 
साँस पानी की 
जैसे थमी थी 
पत्थरों की  तरह 
जो जमी थी   … 
 
स्थितियाँ अब 
बदलने लगी   … बर्फ देखो। 
 
वो जो उम्मीद-
-जैसे खिला है 
साथ सूरज का 
हमको मिला है 
 
दूरियां पास 
चलने लगी     …बर्फ देखो। 
 
मौसम ने 
बदली है करवट 
पायी है 
जीने की आहट 
 
फिर से सांसें 
मचलने लगी
बर्फ देखो 
पिघलने लगी 
.
--मौलिक /अप्रकाशित 
अविनाश बागडे

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Comment by coontee mukerji on December 17, 2013 at 11:02pm

मौसम ने 
बदली है करवट 
पायी है 
जीने की आहट 
 
फिर से सांसें 
मचलने लगी
बर्फ देखो 
पिघलने लगी .......बहुत सुंदर
Comment by Tapan Dubey on December 17, 2013 at 4:28pm
अविनाशजी बहुत खूब , बधाई हो

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 4:07pm

वाह वाह , अविनाश भाई बहुत सुन्दर नवगीत के लिये बधाई ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 17, 2013 at 3:16pm

अविनाश जी

आपकी रचना बड़ी हसीं है  i  आपको सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई  i

Comment by Meena Pathak on December 17, 2013 at 2:54pm

लाजवाब नवगीत है आदरणीय अविनाश जी | सादर बधाई स्वीकारें 

Comment by Sushil Sarna on December 17, 2013 at 1:38pm
साँस पानी की 
जैसे थमी थी 
पत्थरों की  तरह 
जो जमी थी   … 
 
स्थितियाँ अब 
बदलने लगी   … बर्फ देखो। ...waaaaaaaah behad khoobsrat bhavon ka sparsh detee rachna...haardik badhaaee aa.Avinash jee

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