For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिटायरमेंट के छह महीने बाद कैंसर से पीड़ित बाबूजी के देहांत होने पर परिवार के सभी लोग दुखी थे. किंतु सबसे ज़्यादा दुखी उनका बेटा माखन था, रो रोकर उसका बुरा हाल था इसलिए नही कि उसका बाप मर गया था बल्कि वो यह सोच रहा था कि जब मरना ही था तो नौकरी मे रहते क्यूँ न मरे उसे उनकी जगह नौकरी मिल जाती; उसकी जिंदगी संवर जाती वर्ना लम्बा जीते ताकि उनकी पेंशन से उसका परिवार पल बढ़ जाता.तभी अचानक पड़ोसी ने पूछा दाह संस्कार किस रीति रिवाज़ से करेंगे. माखन अपने मरे बाप का कम से कम पैसे में अंतिम संस्कार करना चाह रहा था वो ज़ोर से चीखा चिल्लाया:

"बाबूजी मुझसे कहा करते थे कि उनका दाह संसकार विद्युत् शवदाह ग्रह में किया जाए और दसवा तेरहवीं में फ़िज़ूल खर्च बिल्कुल न किया जाए"
ऐसा ही किया गया. मगर सब स्तब्ध थे कि माखन का बाप तो गूंगा था..............

.

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 606

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:38am

कितनों की प्रखर प्रगतिशीलता का आधार इतना नोनी लगा भी होता है ! ऐसा भी होता है !!

बधाई नीरज भाईजी.. आपकी संभवतः किस पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ.

शुभ-शुभ-शुभ हो

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 17, 2013 at 11:16pm

शायद! ऐसी  विकृत मन:स्थिति तब बनती है, जब बच्चों को बहुत ज्यादा उम्र तक निर्णय लेने की क्षमता लायक न समझा जाता हो, और अधिक आश्रय मिलता हो, यहाँ तक की माता-पिता बड़ी उम्र के बच्चों को भी मुह में निवाला भी देते हो, ऐसे में बच्चे निकम्मे और मक्कार हो जाते है, और आश्रय छूटने पर ऐसी सोच रखने लगते है, बढ़िया लघुकथा आदरणीय नीरज जी बधाई स्वीकारें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 17, 2013 at 9:42pm

हालात और स्वार्थ इंसान को कितना भावहीन बना देते हैं की एक बेटा पिता की मृत्यु पर ऐसी किसी संवेदनहीन विचारधारा के चलते स्वार्थपरक कर्म करने को बाध्य हो जाता है.

इस लघुकथा पर हार्दिक बधाई आ० नीरज खरे जी 

Comment by Shubhranshu Pandey on December 17, 2013 at 9:15pm

आदरणीय नीरज जी, 

एक विद्रुप सच्चाई है. जिसे नाकारा नहीं जा सकता है.

प्रेम चन्द की ’कफ़न’ शायद इन्ही मनःस्थितियों में कही गयी होगी.

सादर.

Comment by राजेश 'मृदु' on December 17, 2013 at 4:46pm

कुछ कपूत ऐसे भी होते हैं, यह सही है । आपकी कथा के सत्‍य से मैं सहमत इसलिए हूं कि मैं उस घटना का भी साक्षी रहा हूं जब ऐसे ही किसी नालायक ने अपने पिता को मौत के घाट उतार दिया हालांकि वह पकड़ा गया और नौकरी के बदले जहन्‍नुम चला गया पर कुछ लोग विकृत मन:स्थिति वाले होते हैं, आपको बधाई इस प्रस्‍तुति पर

Comment by Meena Pathak on December 17, 2013 at 4:22pm

कुछ के लिए हम सभी बेटों को स्वार्थी नही कह सकते आ० शिज्जू जी |
सादर 

Comment by Meena Pathak on December 17, 2013 at 4:21pm

बेटों का इतना कसैला चित्र ..... क्या कहूँ .. आप को बधाई दूँ या आने वाले समय को सोच कर सहम जाऊं |

माफ़ी चाहती हूँ एक सवालहै "आप सब भी बेटे हैं क्या ऐसा ही सोचते हैं अपने माता-पिता के लिए  ?" आप सब मुझे  क्षमा कीजियेगा मेरी बात बुरी लगी हो तो | लघुकथा पढ़ के सहम गई मै क्यों कि मेरे भी बेटे हैं और मैंने उन्हें सीख और संस्कार के सिवा कुछ नही दिया ना दे जाऊँगी तो क्या वो भी मुझे ..............नहीं सोच भी नही सकती मुझे अपने बेटों पर गर्व है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 3:44pm

आदरणीय नीरज भाई , पुत्र के स्वार्थ की पराकाष्ठा  को आपने कथा मे सुन्दरता से उकेरा है । लघुकथा के लिये बधाई ॥

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 17, 2013 at 2:45pm

नीरज जी

अत्यंत सुन्दर कथ्य है i मन को छु गया i  बधाई हो i

Comment by ram shiromani pathak on December 16, 2013 at 11:22pm

सोचने पर मज़बूर करती है ये आपकी लघुकथा आदरणीय मैंने तो कई बार पढ़ा बहुत ही सुन्दर सृजन बधाई आपको। .........  सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
6 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service