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- दोहावली -

संग हरि किये हरि हुये, दानव ,दानव संग

किंतु न मानव बन सके, कर मानव के संग    

 

कह सुन खाली मन करें, बचे न कोई बात ।

मन को उजला कीजिये, जैसे उजली रात ।।

 

लघुता को गुरुता कहे,लघुता की रख प्यास ।

गुरुता फिर आये नहीं, मत करना तू आस ।।

 

ढाल जिधर है बह गये, ये मुर्दों का ढंग ।

जीवित पहले परख के, तब होवत है संग ।।

  

मन पंछी को बांध रख, डोरी एक बनाय ।

उछले कूदे खींच दे , वापस घर में आय ।।

 

मैं को सबसे जोड़ मत , अलग न जुड़ के होय ।

दुख की जड़ फैलाय जो, वो जीवन भर रोय ।।

 

तन का घाव दिखे मगर,दिखे न मन का पीर ।

बाहर से है ठीक सब , अन्दर से गम्भीर ।।  

 

क्यों सहते बैठे रहें, पीठ करे जो घात ।

अब अंतिम परिणाम तक ,जारी हो प्रतिघात ।।

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 4, 2013 at 7:04am

आदरणीय शिज्जू भाई , सनातनी छन्द मे केवल दोहा ही थोडा समझ पाया हूँ , सो प्रयास करते रहता हूँ !!! आपको दोहो भाव पसन्द आये , आपको बहुत शुक्रिया !!!!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 4, 2013 at 3:42am

नैतिक और ज्ञानवर्धक दोहों के लिए हार्दिक बधाई


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 3, 2013 at 11:21pm

वाह आदरणीय गिरिराज सर सनातनी छंद में आपको प्रयास करते हुये अच्छा लगा शिल्प की तो मुझे जानकारी  नही है लेकिन भाव अच्छे लगे कोशिश करते रहें


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:11pm

आदरणीय सुशील सरन भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया !!!!! आदरणीय आपने मेरा नाम गलत लिख दिया है !!!!!


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:09pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , सच है , मन मे संतोष है भाई जी , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ !!!!


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:07pm

आदरणीय श्याम भाई , दोहों की सरहाना के लिये आपका आभार !!!!!


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:06pm

आदरणीया कुंती जी ,सराहना और  उत्साह वर्धन वर्धन  के लिये आपका शुक्रिया !!!!!!


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Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2013 at 9:03pm

आदरणीय बडे भाई अखिलेश जी , दोहों ही सराहना के लिये आपका आभारी हूँ !!!!!!

Comment by Sushil Sarna on December 3, 2013 at 7:45pm

aa.Brijesh jee badee hee manmohak aur sandeshaatmak dohavali prastut kee hai aapne....hr doha apne men poorn aur sandeshprerak hai...ati sundr...haardik badhaaee

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 3, 2013 at 6:33pm

मित्रानुज

क्या सुन्दर दोहे है i

ज्ञानवर्धक भी है i

कहिये मेरे मीत प्रिय , भंडारी  गिरिराज  i

ऐसे दोहे विरच कर , कैसा  लगता आज ?  धन्यवाद मित्र i

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