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घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है

बात सच जो लबे खुद्दार में आ जाती है

मैं ये सोचे हूँ क्यूँ बेकार में आ जाती है

 

सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो  

उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है

 

हर दफा सुन के चुनावी औ सियासी बातें

याँ चमक सूरते बीमार में आ जाती है

 

गालियाँ भीड़ को दे यार से भी लड़ मर ले

कैसे हिम्मत किसी मैख्वार में आ जाती है

 

रोते चेहरों को हँसाना ही जिन्हें है भाता  

रूह उन जैसी भी संसार में आ जाती है

 

बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा

घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है

 

“दीप” मुस्कान लिए लब पे हमेशा जलना

ऐसे जलने की अदा प्यार में आ जाती है

.............दीप...............

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by बृजेश नीरज on November 26, 2013 at 7:58pm

बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

हम भी खड़े हैं राहों में नज़रे-इनायत के लिए!

Comment by नादिर ख़ान on November 26, 2013 at 4:36pm

सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो  

उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है 

 

बात घर की तो रहे घर में ही अच्छा होगा

घर से निकली तो वो अखबार में आ जाती है 

क्या ही खूबसूरत अशआर है, बहुत खूब आदरणीय  संदीप जी ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 26, 2013 at 2:14pm

आदरणीय सन्दीप भाई , सम्पूर्ण गज़ल बहुत लाजवाब कही है , आपको तहे दिल से बधाई !!!! आदरणीय बह्र लिख देने से समझने में आसानी होती !!!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 1:54pm

बहुत खूब संदीप भाई, दूसरे और छ्ठें की विशेष बधाई ॥

Comment by Sushil Sarna on November 26, 2013 at 12:54pm

ati sundr....sundr bhaavon ka sundr guldasta..mubarak

Comment by Saarthi Baidyanath on November 26, 2013 at 12:46pm

सारा दिन खेलती है साथ में बच्चों के जो  

उनके सोते ही वो बाज़ार में आ जाती है........दर्द है साहब ...उम्दा शेर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 26, 2013 at 12:44pm

पटेल जी

आपने मित्र मन मोह लिया

आगाज से अंजाम तक

क्या खूब कहा है

भाव भक्तो को मजा आएगा  i मेरी बधाई i

कृपया ध्यान दे...

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