For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सैलाब ..... विजय निकोर

सैलाब

 

अश्कों के बहते सैलाब से जूझते

जब-जब उस आख़री खत को पढ़ा

बेचैन दुखती आँख से मेरी , हर बार

काँपता आँसू वह तुम्हारा था टपका ...

 

कहती थी, खुदा से बात की है तुमने

सुख-दुख हमेशा साझा रहेगा हमारा

अच्छा था फ़ैसला यह तुम्हारे खुदा का

खुश हूँ, तुम्हारा दुख तो अब मेरा रहेगा।

 

कितनी बातें थीं बाकी अभी तो करने को

सिर्फ़ मौसम पर बातें करने के अलावा

दुहरा दिया क्यूँ यादों ने वह किस्सा पुराना

झोंकों में और भी तो नगमे थे इसके सिवा।

 

आखरी उदास शाम उदास न होती तो क्या होती

क्या हुआ आज जो तुम्हारी हर याद से रोना आया

तुम थी तो आते थे मौसम पर मौसम कितने, अब

बस सिसकता सावन, कोई मौसम नया नहीं आया।

 

भीग गए हैं इस सैलाब में उस खत के सारे पन्ने

पर दिल पर लिखे खत का लफ़ज़ एक नहीं बिखरा

अच्छा है टपकते रहे हैं मेरी आँखों से आँसू तुम्हारे

बिना आँचल तुम्हारे, इन आँखों से सैलाब निखरा।

-------

-- विजय निकोर

 (मौलिक व अप्रकाशित)

 

 

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 28, 2013 at 8:22am

 

//वियोग को बहुत गहन अभिव्यक्ति मिली है//... रचना के मर्म को छूने के लिए और सराहना के लिए

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई सौरभ जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on November 28, 2013 at 8:18am

आदरणीया गीतिका जी, आपने रचना को मान दिया, मैं आपका आभारी हूँ।

 

सधन्यवाद,

विजय निकोर

Comment by vijay nikore on November 28, 2013 at 8:16am

आदरणीय भाई संदीप जी, रचना की सराहना के लिए हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Priyanka singh on November 25, 2013 at 9:22pm

भीग गए हैं इस सैलाब में उस खत के सारे पन्ने

पर दिल पर लिखे खत का लफ़ज़ एक नहीं बिखरा

अच्छा है टपकते रहे हैं मेरी आँखों से आँसू तुम्हारे

बिना आँचल तुम्हारे, इन आँखों से सैलाब निखरा।

बहुत बहुत खूब.....लाजवाब बहुत ही खूब......बधाई सर...... 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 21, 2013 at 9:07am

अति सुंदर भाव, अथाह गहराई ली हुई रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी

Comment by Vindu Babu on November 21, 2013 at 6:09am

प्रेम का नित्य साथी वियोग....इसी रस में पगी हुई सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई आपको आदरणीय।

रचना को देखते ही लगा, लगता है इस बार अपने अभिव्यक्ति को किसी छंद विधान में बांध दिया पर वास्तव में 'छंद मुक्त', आपके  उत्कृष्ट मुक्त भावेश का परिचायक है।

बहुत सुन्दर।

शुभ शुभ

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 20, 2013 at 9:42pm

हर बार की तरह ये प्रस्तुति भी मन को भिगो गई आपकी रचनाएं जैसे गहन खारे सागर से निकल कर आती हैं ,बधाई आपको सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 20, 2013 at 6:58pm

अच्छा है टपकते रहे हैं मेरी आँखों से आँसू तुम्हारे

बिना आँचल तुम्हारे, इन आँखों से सैलाब निखरा।---वाह ! आदरणीय निकोरे जी, क्या खूब लिखा है, अति संवेदनशील 

                                                                               और प्रेम वियोग में भिगोई कलम से | बहुत खूब बधाई 

Comment by MAHIMA SHREE on November 19, 2013 at 11:13pm

आदरणीय विजय सर ... आपकी सभी रचनाएं भावनात्मक तो होती ही है और मन के भीतर तक छु जाती हैं ... ये प्रस्तुती भी उसी कोमलता से प्रस्तुत हुयी है ... बधाई स्वीकार करें

Comment by ram shiromani pathak on November 19, 2013 at 11:00pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति  आदरणीय विजय निकोर  जी बधाई  आपको///सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
12 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
yesterday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
yesterday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service