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बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते (ग़ज़ल "राज")

२१२२   २१२२  २१२२  २

बह्र- "रमल मुसम्मन महजूफ"

.

मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते

ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते

 

इक  समंदर हम नया दिल में बसा देते 

तुम अगर  आँसू  हमें पीना सिखा देते

 

आजिज़ी होती न दिल में तीरगी होती

बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते

 

रूह प्यासी  क्यूँ ये सहरा में खड़ी  होती

प्यार का चश्मा अगर दिल में बहा देते  

 

दिल मुहब्बत में धड़कता ये हमारा भी

तुम अगर उल्फत भरे नगमे सुना देते

 

इक फ़सुर्दा फूल चाहत  में हुए तेरी 

फिर  महक जाते अगर तुम मुस्कुरा देते 

 

गमज़दा बेशक़, नहीं मगरूर हम देखो 

लौट आते, तुम अगर मुड़ कर सदा देते

 

काँपती चौखट न दीवारें हिला करती

प्यार  के आधार पर जो घर टिका देते

 

तल्खियां सब “राज” दिल में दफ्न कर जाती  

ये जमीं तो क्या सितारे भी दुआ देते

*********************

 

आजिज़ी=उकताहट

फ़सुर्दा=मुरझाये हुए

मुन्तज़िर=प्रतीक्षारत

तल्खियां =कडवाहट

तीरगी =अँधेरा (गम )

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

(संशोधित)

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Comment

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Comment by Meena Pathak on November 16, 2013 at 11:55am

काँपती चौखट न दीवारें हिला करती
प्यार  के आधार पर जो घर टिका देते

 

तल्खियां सब “राज” दिल में दफ्न कर जाती  

ये जमीं तो क्या सितारे भी दुआ देते...............बेहतरीन गज़ल, बहुत बहुत बधाई आप को | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 16, 2013 at 11:43am
आदरणीया राजेश कुमारी जी , अब तक पढी आपकी गज़लों मे सबसे अच्छी गज़ल , मेरी नज़र में !!! हर शेर उम्दा हैं !!! आपको दिल की गहराई से बधाई !!!
मै किसी एक शे र को बेहतर नही कहाँ सकता !!!!!
Comment by Arun Sri on November 16, 2013 at 11:41am

वाह ! बेहतरीन गज़ल ! ये अश'आर कुछ खास पसंद आए ! बहुत बढ़िया !
इक फ़सुर्दा फूल चाहत  में हुए तेरी 

फिर  महक जाते अगर तुम मुस्कुरा देते

तल्खियां सब “राज” दिल में दफ्न कर जाती  

ये जमीं तो क्या सितारे भी दुआ देते

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 16, 2013 at 11:10am

बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही आपने,  इक .फर्सुदा फूल चाहत में  हुए तेरी  फिर महक जाते अगर तुम मुस्करा देते  बहुत खूब,  मुबारकवाद

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