For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिजीविषा - (रवि प्रकाश)

नगरी-नगरी
फूटी गगरी
लेकर पानी
पीना है।
मेरी छानी
गारा-मिट्टी
तेरा आँगन
भीना है।
रेशम-रेशम
तेरा आँचल
मेरा कुर्ता
झीना है।
शैल-शिखर सा
मस्तक तेरा
मेरा बोझिल
सीना है।
दुनिया,तूने
बीच भँवर में
आस-आसरा
छीना है।
अन्धकार में
आँखें फाड़े
जुगनू-जुगनू
बीना है।
खुली हथेली
ख़ाली बर्तन
फिर भी हमको
जीना है।

-मौलिक एवं अप्रकाशित।

Views: 916

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on October 8, 2013 at 9:01pm
आ॰ प्राची जी, आपको पंक्तियाँ पसंद आईं, मेरा लिखना सार्थक हुआ। सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 8, 2013 at 9:01pm

अन्धकार में
आँखें फाड़े
जुगनू-जुगनू
बीना है।
खुली हथेली
ख़ाली बर्तन
फिर भी हमको
जीना है।वाह्ह्ह्ह बहुत ही सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुति आपकी हार्दिक बधाई आपको रवि प्रकाश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 8, 2013 at 8:27pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति आ० रवि प्रकाश जी 

हर बंद विशेष है.. 

मेरी छानी
गारा-मिट्टी
तेरा आँगन
भीना है।........... वाह!

अन्धकार में
आँखें फाड़े
जुगनू-जुगनू
बीना है।..............जितनी तारीफ़ की जाए इन पंक्तियों की कम ही होगा 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Ravi Prakash on October 8, 2013 at 7:06pm
आदरणीय, मेरे प्रयासों में जो भी सरस और श्रेष्ठ यदा-कदा दृष्टिगोचर होता है, वह आप जैसे सुधी जनों के आशीर्वाद और इस शिक्षाप्रद एवं गरिमामय मंच से ही सीखा है। मैं पुनः पुनः आपको धन्यवाद देता हूँ। कृपया मार्गदर्शन करते रहें।
Comment by विजय मिश्र on October 8, 2013 at 6:30pm
रविजी ,छेड़कर आपने मुझे पुनः लिखने को बाध्य किया है -यह छूट गया था , शीर्षक का चयन या कहें कि शीर्षक को दृष्टि में रख रचना का गढन ,आपमें इसकी भी अपूर्व क्षमता है , यह सदैव विषय के केन्द्र में होता है .दूसरा मै आपके शब्द सामर्थ्य को भी नमस्कार करता हूँ ,तिलस्मी खजाना है और यह मैं समझ पा रहा हूँ कि इतने सुंदर सृजन के पार्श्व में कितना गहन अध्ययन प्रछन्न रूप से विद्यमान होता है,माँ शारदे आपकी प्रखरता को और प्रखरतर करें . पुनश्च धन्य ....धन्य ...आनंद .
Comment by Ravi Prakash on October 8, 2013 at 5:52pm
आ॰ विजय जी, इतना स्नेह एवं साधुवाद पा कर निःसंदेह मन को असीम तृप्ति और आनंद प्राप्त हुआ है। ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया। आशीर्वाद बनाए रखें।
Comment by विजय मिश्र on October 8, 2013 at 5:42pm
रविजी ,शब्द केलिए मगजमारी करनी पड़ती है आपकी रचनाओं की श्रेष्ठता को आदर देने केलिए .वास्तव में शब्द संयोजन ,अंतर्निहित भाव और सुगम प्रवाह का अद्भुत सममिश्रण है आपकी यह मधुर कव्यमाधुरी . जितनी प्रसंशा करो ,मन तृप्त नहीं होता . धन्य .
Comment by Ravi Prakash on October 7, 2013 at 9:53pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by Meena Pathak on October 7, 2013 at 9:29pm

खुली हथेली
ख़ाली बर्तन
फिर भी हमको
जीना है।.............. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 7, 2013 at 8:28pm

आदरणीय रवि प्रकाश भाई , बहुत कम शब्दों मे बहुत सुन्दर रचना हुई है !!!! वाह !! ! बधाई !!!

खुली हथेली
ख़ाली बर्तन
फिर भी हमको
जीना है। -------------- वाह वाह !!!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
5 hours ago
Vikas is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service