For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"डॉ साहिब, हमें बेटी नहीं चाहिए. आप बहू का एबॉर्शन कर दीजिए."
"ठीक है, आप लोग कल शाम मेरे प्राइवेट क्लिनिक पर आ जाईए".
"कल नहीं डॉ साहिब, हम लोग अगले हफ्ते ही आ पाएंगे"
"अगले हफ्ते क्यों ?"
"क्योंकि अभी नवरात्रे चल रहे हैं "

(मौलिक एवँ अप्रकाशित्)

Views: 1148

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 10:41am

आदरणीय बेहद सशक्त लघुकथा इसे कहते हैं गागर में सागर भरना कम शब्दों में कितनी बड़ी बात कह गए आप, इस सुन्दर संदेशात्मक लघुकथा हेतु हृदयतल से हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by vijay nikore on October 6, 2013 at 3:03am

आदरणीय योगराज जी:

 

इतने थोड़े से शब्दों में आपने हमारे समाज की किताब लिख दी है...

बधाई के लिए उचित शब्द नहीं हैं... कृपया स्वीकार करें..

 

सादर,

बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 5, 2013 at 11:22pm

कम शब्दों में बहुत बड़ी बात, बधाई स्वीकारें आदरणीय योगराज जी

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:32pm

वाह सर वाह क्या बात कह डी चाँद लाईनों में ! अति उम्दा !

Comment by Meena Pathak on October 5, 2013 at 7:55pm

वाह, क्या बात है |कम शब्दों में बहुत बड़ी बात | बधाई स्वीकारें आ० योगराज जी 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 5, 2013 at 7:45pm

आदरणीय अग्रज,

न्यूनतम शब्दों में अधिकतम सम्प्रेषण! इसे ही कहते हैं 'बिंदु में सिंधु'! शुभकामनाएँ,

Comment by Abhinav Arun on October 5, 2013 at 6:26pm

 जी यह लघु कथा है ... एम् ए में कथा के जो तत्व बताये गए थे उनसे युक्त ...बहुत सशक्त और विचारणीय विन्दु को रोचकता के साथ कथा शिल्प में पिरोया गया है ..बहुत बहुत साधुवाद आदरणीय , नमन आपको !!

Comment by रविकर on October 5, 2013 at 5:55pm

उन्हें देवि की यथोचित कृपा प्राप्त हो-

मार्मिक कथ्य-

आभार आदरणीय-

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 5, 2013 at 4:40pm
 
वाह ! क्या ही सुन्दर लघुकथा है । सिर्फ चार ही  पंक्तियों में इतनी वजनदार बात कही है आपने । कहते हैं  ना--  सतसैया के दोहे ज्यों नाविक के तीर , देखन को छोटे लगे घाव करे गंभीर ॥ कृपया बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें योगराज जी  । 
Comment by वेदिका on October 5, 2013 at 4:13pm

नवरातों के बाद दुर्गा जी तो चली जाएगी फिर कौन देखने वाला है यहाँ,,कुछ भी करो !! 

बहुत मार्मिक कथा आदरणीय योगराज जी!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
18 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service