For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समय समय की बात है ,देखो बदली रीत !
मौन कोकिला हो गयी ,कौवे गाते गीत !!१

दुबका दुबका सच दिखे ,सहमा सहमा धर्म !
जबसे लोगों के हुए ,उल्टे गंदे कर्म !!२

मेरे प्यारे गाँव की ,बदल गयी तसवीर !
वही नदी है ,नाव है, किन्तु न दिखता नीर !!३

देखो फिर से हो गया ,मुख प्राची का लाल !
किरणों ने कुछ यूँ मला ,उसके गाल गुलाल !!४

तन पर कपड़ों की कमी ,हाड़ कपाती शीत !
बना गरीबों के लिए ,यही दर्द का गीत !!५

लालच कटुता द्वेष की ,फ़ैल गयी है आग !
कम ही दिखता है मुझे ,प्यारा मृदु अनुराग !! ६

स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !!७

*********************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

मौलिक /अप्रकाशित

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:07pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय मिश्र  जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 6:07pm

बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी //सादर 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 30, 2013 at 2:51pm

वाह भाई वाह दिल खुश कर दिया आपने अप्रितम अप्रितम दोहावली भाई क्या कहने छा गए आप तो दिल से बधाई स्वीकारे भाई इस सुन्दर दोहावली पर.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 30, 2013 at 11:58am

क्या बात है भाई साहब इस आधुनिक परिवेश को सार्थक करती रचना के लिए साधुवाद आपको

जय हो

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 11:56am
सुंदर रचना ,
"स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !! " - क्या खूब कहा . बधाई |
Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 4:40am

बहुत सुन्दर दोहे हैं।

हार्दिक बधाई, आदरणीय राम जी।

 

सादर,

विजय निकोर

 

 

Comment by ram shiromani pathak on September 29, 2013 at 10:47am

बहुत बहुत आभार आदरणीया प्राची जी,दोहे आपको प्रभावित किये यह मेरे लिए उपलब्धि है ///स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 29, 2013 at 10:39am

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 

आपकी दोहावली के कथ्य की गंभीरता और संवेदनशीलता प्रभावित करती है 

बहुत सुन्दर दोहे ..हार्दिक बधाई

Comment by ram shiromani pathak on September 29, 2013 at 10:10am

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मन जी //स्नेह यु ही बनाये रखें //सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 29, 2013 at 9:35am

बहुत सुन्दर भाव रचित दोहे श्री राम शिरोमणि पठाक जी हार्दिक बधाई -

देखो फिर से हो गया ,मुख प्राची का लाल !
किरणों ने कुछ यूँ मला ,उसके गाल गुलाल !! - सुन्दर 

स्वार्थ सिद्धि की दौड़ में ,बदला जब इंसान !
शायद तब से ही हुये ,पत्थर के भगवान !!७ - बहुत खूब 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
10 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service