For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल
वजन : 2212 2212

 

बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। 
 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 
तो शेर कहना आ गया ।2।

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : डर

Views: 1340

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:41am

आदरणीय भाई अभिनव अरुण जी आप जैसे ग़ज़लगो से सराहना मिलना किसे न खुश कर जाय, मन आनंदित है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:39am

आभार सिज्जू भाई । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:38am

आदरणीय भ्रमर जी, प्रोत्साहित करती टिप्पणी हेतु सादर आभार व्यक्त करता हूँ । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:36am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, शेर दर शेर हुई आपकी टिप्पणी पढ़ अत्यंत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ, आपकी सराहना मेरे लिए महत्वपूर्ण है, बहुत बहुत आभार ।   

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 11:10am

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।.......वाह! क्या कहने,  लाजवाब शेर

बहुत खूब , बेहतरीन गजल , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय गणेश जी

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2013 at 9:13am

धड़कन जो पढ़ना आ गया,
तो शेर कहना आ गया ।2।

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5

         ..... लाजवाब जिंदाबाद कलाम श्री बागी जी क्या कहने बहुत उम्दा सामयिक सशक्त ...बधाई बधाई !!।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 14, 2013 at 8:15am

बहुत बढ़िया आदरणीय बागी जी इस ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 12:15am

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।

आदरणीय बागी जी ...अद्भुत ..क्या समझा गई ये प्यारी और अनोखी गजल .आँखें खोलने वाली ..बधाई ......
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2013 at 11:40pm

बकवास करना आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1।-----सही कटाक्ष

धड़कन जो पढ़ना आ गया,
तो शेर कहना आ गया ।2।-----वाह्ह्ह्ह लाजबाब धडकनों में डूब कर ही ये शेर लिखा है लगता है

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।----बहुत गंभीर शेर दिल छू गया

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।---वाह बहुत बढ़िया कटाक्ष

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।----लाजबाब लाजबाब कितनी तारीफ करूँ इस शेर की कम होगी
आदरणीय गणेश जी पहले प्राची जी की ग़ज़ल पढ़ी आज अभी आपकी पढ़ रही हूँ लगता है ओ बी ओ गजलमय हो रहा है
बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी आपने तहे दिल से दाद देती हूँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2013 at 9:48pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी टिप्पणी एकदम से उत्साह्वार्धित करती है, प्रथम सराहना पाकर अच्छा लगा, आभार प्रेषित है स्वीकार करें । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Jul 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Jul 27
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service