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एक खबर यह भी (लघु कथा )

सुबह सुबह न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था , कही पर चोरी की वारदात, कही रेप केस , तो कही हत्या। । आखिरी के पन्नो पर खेल समाचार …और  होता ही क्या है एक न्यूज़ पेपर के अंदर …और जाने कितनी  समाज सुधारक बातें मन में विचरण करने लगी। । कल्पनाओं   के समुंदर में गोते लगाने के बजाए मैं ऑफिस के लिए तैयार होने लगा। ….
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घर से बाहर निकला ही था, कि मेरी नज़र एक कबाड़ बीनने वाले बच्चे पर गयी, जो सामने लगे विज्ञापन बोर्ड को बड़े ध्यान से देख रहा था…. आखिर वो क्या देख रहा था ? क्या पढ़ रहा  था ?  मेरे मन में उत्सुकता हुयी। …. मैं बच्चे के पास गया और पूछा "क्या कर रहा है यहाँ पर  ?" अचानक हुए इस वार से बच्चा पहले तो घबरा गया , और हडबडा कर बोल " नहीं, कुछ भी तो नहीं " …. मैं जानना चाहता था कि वो विज्ञापन बोर्ड पर क्या पढ़ रहा था, इसलिए मैंने प्यार से पूछा  " बता न यार , क्या देख रहा था, उस बोर्ड पर, वहां तो कोई तस्वीर भी नहीं है " बच्चे ने मेरे इस बर्ताव को देखकर, चेन की सांस ली और बोला " कुछ नहीं अंकल, " मैंने कहा " कुछ नहीं तो, इतनी देर से क्या देख रहा था इस बोर्ड पर" .....
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बच्चे ने कहा " कुछ नहीं, ये जो अजीब सा बना होता है, वो मुझे बड़ा अच्छा लगता है," मैंने कहा " अरे इस पर तो कुछ नहीं बना हुआ है, तू किस की बात कर रहा है " तब बच्चा बोला " ये जो टेढ़ी मेडी डंडिया खिची हुयी है , मुझे बहुत अच्छी लगती है, आपको पता है अंकल, मैं रोज़ खाली  वक़्त में इन्हें बनाने की कोशिश करता हूँ "… बीच में टोकते हुए मैंने अपनी बात कही "जब ये इतना ही पसंद है तो स्कूल क्यों नहीं जाते !" उत्तर मिला " पूरे दिन कबाड़ में रहने के बाद अंकल, शाम की रोटी हो पाती है , माँ हमेशा बीमार रहती है और बापू नशे में," एक बार फिर उसकी बात काटी मैंने "पढना पसंद है तो , मैं तुम्हारी मदद करूँगा , रोज़ एक घंटे मेरे पास आना " मेरी बात पूरी नहीं होने दी नादान ने " हमारे यहाँ बच्चे स्कूल नहीं जाते, वो तो पैदा होते ही , पैसा कमाने लगते है, मोहल्ले में मेरा एक दोस्त है कल्लू , उसके घर पर सब बढ़िया है , फ्रिज , टेलीविज़न सब है, कोई दिक्कत नहीं , फिर भी स्कूल नहीं जाता , कबाड़ बीनता है क्योंकि  हमारे यहाँ सब यही काम करते है। । मैंने कई बार कहा कि मैं भी स्कूल जाना चाहता हूँ, तो सबने मेरा मजाक उड़ाया " और बोलते बोलते कब उसकी आँखों से आसू छलक आये , मैं कुछ कह पाता उससे पहले वो वहां से जा चूका था। ….
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हमारे समाज का सबसे दुश्मन शायद यही है , जिस दिन न्यूज़ पेपर में इसके बारे में छपने लगेगा, तब और खबरे छपनी  बंद हो जाएँगी.... ...
मौलिक एवं अप्रकाशित 
सुमित नैथानी

Views: 947

Comment

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Comment by Sumit Naithani on September 4, 2013 at 9:39am

विजय जी@गरीबो को हर बात का जिम्मेदार समझा जाता है, खासकर ये कहकर की इन्हें आची तालीम नहीं मिली, इसलिए ये ऐसे बने ,,, 

Comment by Sumit Naithani on September 4, 2013 at 9:37am

राम   जी@ शुक्रिया 

Comment by Sumit Naithani on September 4, 2013 at 9:35am

अन्नपूर्णा  जी@ शुक्रिया 

Comment by Sumit Naithani on September 4, 2013 at 9:34am
अविनाश जी@ शुक्रिया
Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 9:00am

सुन्दर भाव लिए हुए सार्थक सन्देश देती हुई रचना ... बहुत बहुत बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 3, 2013 at 11:20pm

बहुत अच्छा सन्देश देती हुयी रचना, हार्दिक बधाई सुमित भाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 3, 2013 at 8:33pm

हमारे देश का एक चेहरा ये भी है जिसको देख कर इस देश का भविष्य गर्दिश में नजर आता है कहानी का मर्म बहुत शानदार है हार्दिक बधाई आपको 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 3, 2013 at 7:56pm

जिस कथ्य को लेकर कथा लिखी गयी है, वह आज भी कई शहरों में, कच्ची बस्तियों में समस्या बनी हुई है | इस पर लिखी गयी कहानी 

के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Shubhranshu Pandey on September 3, 2013 at 7:08pm

आदरणीय सुमित जी, बहुत सुन्दर कथा. एक बच्चे की इच्छा और जिज्ञासा को सुन्दर ढंग से उतारा है, बधाई..

कथा के शुरुआत में अखबारों के बदले उन्ही विज्ञापनों को आधार बनाते और उनमें एक सर्व शिक्षा अभियान का रंग उडा़ विज्ञापन भी दिखाते. मेरे हिसाब से कथा और प्रवाह बनता....

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 3, 2013 at 5:53pm

आदरनीय सुमित भाई , हमारे समाज और हमारी मिडिया  बहुत सही चित्रण किया आपने ! बहुत अच्छी लघुकथा !! बधाई !!

कृपया ध्यान दे...

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