हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया
कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया
कितना सुहाना मुल्क है, तुमने कहा अखबार में
बीमार से हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
जब से खुले बाजार की रख्खी गयी है नींव तो
हरदिन लगे आघात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
नक्कारखाना बन गया, सुनता नहीं, कोई कहीं
दिन-रात के उत्पात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
कश्ती भंवर में है परेशां, नाखुदा कोई नहीं
फिर गर्दिशे हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
यह देश सारा जल रहा, बस घर तुम्हारे जश्न है
ऐसे ही तहकीकात पर जब लिख दिया तो लिख दिया
चुपचाप कितने रोज तक, हम भी दबाते यूँ कहो
हर बात की औकात पर, जब लिख दिया तो लिख दिया
Comment
वाह .. जब लिख दिया तो लख दिया !
दाद कुबूल करें
हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया
कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया
-मतला खासकर सुन्दर है!
आपकी इच्छानुसार रचना में वांछित सुधार कर दिया गया है आद० डॉ ललित कुमार सिंह जी.
वाह क्या शानदार ग़ज़ल कही है ''पर जब लिख दिया तो लिखा दिया '' रदीफ़ बहुत ही रोचक
आदरणीय ललित कुमार सिंह जी, शानदार गज़ल के लिए दिली मुबारकबाद.......
बहुत सुन्दर लिखा आपने..शुभकामनाये !
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें डा ० साहब|
aapki iss ghazal waah zazbat se jab likh diyaa to likh diyaa
umdaa ghazal
आदरणीय डा० ललित जी बहुत बढ़िया लिख दिया आपने इस गजल हेतु बधाई स्वीकारें ।
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