For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनो ऋतुराज! – ११

सुनो ऋतुराज! – ११


ये मान मनौव्वल, झूमा-झटकी
बरजोरी, करजोरी और मुँहजोरी
तभी तक, जब तक
इस वैभवशाली ह्रदय का
एकछत्र साम्राज्य तुम्हारे नाम है
जिस दिन यह रियासत हार जाओगे
विस्थापित होकर कहाँ जाओगे?
फिर हम कहाँ और तुम कहाँ
सुनो ऋतुराज
हर नगरी की हर चौखट पर
पी की बाट जोहती सुहागिने
मुझ जैसी अभागन नही होती
खोने को सुख चैन
पाने को बेअंत रिक्त रैन
सुख की अटारी और दुख की पिटारी
अब दोनो तुम्हारे नाम
कभी फुरसत में करना हिसाब
मेरे हिस्से क्या और तुम्हारे जिम्मे क्या

सुनो ऋतुराज!
प्रीत के प्रपंच मे
छल को जायज कहा जिसने
वह स्वयं के हाथों छला गया होगा
आनन्द तो तब आए
आंसूओं की बून्द गिरे
और घाव पर नमक की परत चढ जाए
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज
नहीं हुई होगी लाल

सुनो ऋतुराज
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है
कहीं भी जाओ
कभी भी आओ

एक बात याद रखना
अपनी कमीज

झक्क सफेद रखना। ...................... ग़ुल सारिका

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 685

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 7, 2013 at 9:50am

आदरणीया गुल सारिका जी:

 

३ सप्ताह के लिए सफ़र पर था, अत: आपकी यह सुन्दर रचना अब पढ़ी।

बहुत ही भाव व्यंजित मनोहारी कविता लिखी है आपने । 

निम्नांकित पंक्तियाँ मन को बहुत भायीं....

 

आंसूओं की बून्द गिरे
और घाव पर नमक की परत चढ जाए
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज
नहीं हुई होगी लाल

आपको शत-शत बधाई।

विजय निकोर

Comment by MAHIMA SHREE on July 25, 2013 at 11:42pm

वाह !! एक साँस में पढ़ गयी .. बहुत -२ बधाई  आदरणीया .. गजब की प्रस्तुति //

Comment by Vinita Shukla on July 25, 2013 at 11:08pm

इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज
नहीं हुई होगी लाल सुनो ऋतुराज
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है.....बहुत खूब, अद्भुत! हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 25, 2013 at 10:43am

आंसूओं की बून्द गिरे 
और घाव पर नमक की परत चढ जाए 
इस नमक का स्वाद 
निसन्देह उसने नही चखा होगा 
सुहागन के सिन्दूर से उसकी कमीज 
नहीं हुई होगी लाल

सुनो ऋतुराज 
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है 
कहीं भी जाओ कभी भी आओ

एक बात याद रखना 
अपनी कमी झक्क सफेद रखना। ........बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by coontee mukerji on July 24, 2013 at 3:44pm

सुनो ऋतुराज
इस ब्याहता ने सिन्दूर से होली खेली है
कहीं भी जाओ
कभी भी आओ

एक बात याद रखना
अपनी कमीज

झक्क सफेद रखना।..................सुनो ऋतुराज.....यह दिलेरी मन को भा गयी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 12:30pm

एक प्रेयसी या सुहागन का ऋतुराज.. और उससे जुड़े अन्तः के अनगिन भाव 

इस कशिश पर मन मुग्ध हो गया. प्रेम, गर्व, पीड़ा जनित सीख सिखाने के भाव और चेतावनी सब कुछ है इस अभिव्यक्ति में.

बहुत पसंद आई यह रचना 

हार्दिक शुभकामनाएँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:04am

रचना में निस्स्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा है तो संशय भी. समर्पित हो जाने की आश्वस्ति है तो अपने भाव का गर्व भी. अर्पण का सुख है तो आहत मन की पीड़ा भी.  बहुत खूब

प्रस्तुति अच्छी लगी, आदरणीया गुल सारिकाजी.  बहुत-बहुत बधाई

Comment by Abhinav Arun on July 23, 2013 at 9:07pm
अति सुन्दर हवा के ताज़े झोंके के समान कविता को पढ़कर मुग्ध हुआ ।बहुत बहुत बधाई !!
Comment by Gul Sarika Thakur on July 23, 2013 at 8:45pm

Abhaari hun Aap sabhee .. rachna ke bhaw ne sparsh kiya .. lekhani sarthak huee ...

Comment by annapurna bajpai on July 23, 2013 at 6:29pm

छल को जायज कहा जिसने
वह स्वयं के हाथों छला गया होगा
आनन्द तो तब आए
आंसूओं की बून्द गिरे
और घाव पर नमक की परत चढ जाए
इस नमक का स्वाद
निसन्देह उसने नही चखा होगा ............................ भाव बहुत ही सुंदरता से पिरोये गए है , सच मे अगर घाव देने वाले के घाव पर बूंद गिरे तो मजा आए ।

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service