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स्नेह सुधा बरसाओ मेघा//नवगीत//

स्नेह सुधा बरसाओ मेघा,

व्याकुल हुआ तरसता मन।

 

रिश्तों की जो बेलें सूखीं,

कर दो फिर से हरी भरी।

मन आँगन में पड़ी दरारें,

घन बरसो, हो जाय तरी।

सिंचित हो जीवन की धरती।

ले आओ ऐसा सावन।

 

दूर दिलों से बसी बस्तियाँ,

भाव शून्यता गहराई।

सरस सुमन निष्प्राण हो गए

नागफनी ऐसी छाई।  

बूँद-बूँद में हो बहार सी,

बरसाओ वो अपनापन।

 

उपजाऊ हो मन की माटी,

हर फुहार ऐसी लाओ।

सौंधी खुशबू उड़े प्रेम की,

मेघराज जल्दी आओ।

पुनः पल्लवित हो जीवन में,

शुष्क हुआ जो अंतरमन।

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

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Comment by कल्पना रामानी on July 14, 2013 at 1:12pm

आदरणीय अशोक जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद...

सादर

Comment by कल्पना रामानी on July 14, 2013 at 1:11pm

आदरणीय सौरभ जी आपकी अनमोल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार...

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 14, 2013 at 2:30am

जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टि रचनाकार की अभिव्यक्तियों को सार्वकालिक बना देती है.

पारस्परिक सम्बन्धों में दुराव और वैयक्तिक एकाकीपन से उपजी छटपटाहट के सापेक्ष समाधान हेतु मेघ का आह्वान समीचीन लगा. आपकी इस रचना (नवगीत) के प्रति सादर भाव रखते हुए आपको बधाइयाँ दे रहा हूँ 

सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 13, 2013 at 11:53pm

पुनः पल्लवित हो जीवन में,

शुष्क हुआ जो अंतरमन।.............वाह! बहुत मनभावन.

आदरणीया कल्पना रमानी जी सदर, बारिश की बूंदों से लगी ये आस कितना कुछ चाहती है.बहुत सुन्दर रचना. सादर बधाई स्वीकारें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 10, 2013 at 11:05pm

बहुत सुन्दर नवगीत आ० कल्पना जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by कल्पना रामानी on July 10, 2013 at 6:32pm

Delete Comment

आदरणीय, राजेश कुमारी जी, कुंती जी, केवलप्रसाद जी, आप सबका हर्षित करती हुई टिप्पणियों के लिए हार्दिक धन्यवाद...

सादर

Comment by coontee mukerji on July 10, 2013 at 1:36pm

रमानी जी, आपकी रचना हमेशा  जीवन के अनुभवों की संचीत पूंजी का स्रोत होता है. अति सुंदर

सादर

कुंती

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 9, 2013 at 9:55pm

आ0 रामानी मैम जी,  सादर प्रणाम!   अतिसुन्दर भाव भरे वर्षा गीत।  स्फूर्ति एवं आनंददायनी।  तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारें।   सादर, 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2013 at 8:47pm

उपजाऊ हो मन की माटी,

हर फुहार ऐसी लाओ।

सौंधी खुशबू उड़े प्रेम की,

मेघराज जल्दी आओ।

पुनः पल्लवित हो जीवन में,

शुष्क हुआ जो अंतरमन।

 आदरणीया कल्पना रमानी जी बहुत सुन्दर गीत लिखा हर बंद शानदार है बहुत बहुत बधाई 

Comment by कल्पना रामानी on July 9, 2013 at 6:24pm

राजेश जी, आपकी टिप्पणी उससे दो गुना पुलकित करती है। हार्दिक धन्यवाद आपका

सादर

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