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212221222122212 

 

हक़ किसी का छीनकर, कैसे सुफल पाएँगे आप?

बीज जैसे बो रहे, वैसी फसल पाएँगे आप।

 

यूँ अगर जलते रहे, कालिख भरे मन के दिये,

बंधुवर! सच मानिए, निज अंध कल पाएँगे आप।

 

भूलकर अमृत वचन, यदि विष उगलते ही रहे,

फिर निगलने के लिए भी, घट- गरल पाएँगे आप।

 

निर्बलों की नाव गर, मझधार छोड़ी आपने,

दैव्य के इंसाफ से, बचकर न चल पाएँगे आप।

 

प्यार देकर प्यार लें, आनंद पल-पल बाँटिए,

मित्र! तय है, तृप्त मन, आनंद-पल पाएँगे आप।

 

शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,

क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप।

 

याद हो वेदों की भाषा, मान संस्कृति का भी हो,

हे मनुज! सम्मान का, विस्तृत पटल पाएँगे आप।   

 

मौलिक व अप्रकाशित

कल्पना रामानी

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Comment

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Comment by कल्पना रामानी on July 30, 2013 at 10:41pm

धर्मेन्द्र जी, आप सब विद्वानों को पढ़कर ही सीखती रही हूँ। एकाग्रता और दृढ़ निश्चय ही मेरी सफलता के कारक हैं। आप सबकी टिप्पणियाँ और अधिक ऊर्जा प्रदान करती हैं।आपकी रचनाएँ तो मैं अक्सर जहाँ भी नज़र पड़े, पढ़ लेती हूँ।  आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

सादर

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 30, 2013 at 2:31pm

बहुत खूब कल्पना जी। जिस सहजता से आपने यह ग़ज़ल कही है वो वंदनीय है। आपको पहली बार नवगीत की पाठशाला पर पढ़ा था उसके बाद जहाँ भी आपको पढ़ा हर बार आश्चर्यचकित होना पड़ा। बधाई स्वीकार करें। 

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 12:50am

केतन भाई रही बात लेख पढ़ने की तो ... 
// क्रम ८ - तक्तीअ भाग-एक // की शुरुआत का एक अंश प्रस्तुत है ....

सर्वप्रथम बहर में मिलाने वाली मुख्य छूट याद रखें जो सभी बहर में मिलाती है -
सभी बह्रों में हम अर्कान के अंत में एक अतिरिक्त लघु ले सकते हैं अर्थात यदि अरकान है - २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२ तो इसे हम २१२२ / २१२२ / २१२२ / २१२२+१ भी कर सकते हैं यह छूट खूब प्रचिलित हैं और कई दफे शाइर इससे बड़े फ़ाइदे उठता है विशेष बात यह है कि इस छूट को एक बार किसी मिसरे में लेने पर अन्य मिसरों में इसे दोहराने की कोई बाध्यता नहीं है अर्थात हम ग़ज़ल में किसी भी मिसरे में इसे ले सकते हैं और अन्य मिसरों में इसे लेना अनिवार्य नहीं होगा, इसका उदाहरण हम कई ग़ज़लों को तक्तीअ करते हुए देखेंगे 

इसके बाद इस पूरे लेख में विस्तार से तक्तीअ के द्वारा बताया गया है और रेखांकित किया गया है ...
उदाहरण देखें ---

ग़ज़ल (५) = (२१२२ / २१२२/ २१२२/ २१२) (बहर-ए-रमल की मुज़ाहिफ सूरत)

अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तेहार

रोज अखबारों में पढ़ कर ये ख्याल आया हमें
इस तरफ आती तो हम भी देखते फस्ले बहार

मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूँ पर कहता नहीं
बोलना भी है मना सच बोलना तो दरकिनार
- दुष्यंत कुमार, (साए में धूप, पृष्ठ -६३) 

तक्तीअ (५) =
(यह एक गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल है अर्थात इसमें रदीफ़ नहीं है और कई मिसरों के अंत में अतिरिक्त लघु लिया गया है इसे तक्तीअ में अंडर लाइन तथा मात्रा में +१ के द्वारा दर्शाया गया है)

अब किसी को / भी नज़र आ / ती नहीं को / ई दरा
   २१२२     /    २१२२   /    २१२२   / २१२ +१
घर की हर दी / वार पर चिप / के हैं इतने / इश् तेहा
   २२२     /    २१२२   /    २२२   / २+१

रोज अखबा / रों में पढ़ कर / ये खयाल आ / या हमें
 २१२२     /    २२२   /    २१२२   / २१२
(खयाल आया को अलिफ़ वस्ल द्वारा ख/या/ला/या १२२२ गिना गया है)
इस तरफ आ / ती तो हम भी / देखते फस् / ले बहा
  २१२२     /    २२२   /    २१२२   / २१२ +१

मैं बहुत कुछ / सोचता रह / ता हूँ पर कह / ता नहीं
 २१२२     /    २१२२   /    २२२   / २१२
बोलना भी / है मना सच / बोलना तो / दरकिना
२१२२     /    २१२२   /    २१२२   / २१२ +१


साथ ही इसके बाद की पोस्ट  // क्रम ९ - तक्तीअ भाग - दो //  में भी  तक्तीअ करते हुए इसे रेखांकित किया गया है 

यह बात मैं यहाँ इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि चैट बॉक्स में देखा कि आप इस सम्बन्ध में किसी नए लेख का इंतज़ार कर रहे हैं
आशा करता हूँ आप इन दो लेखों को फिर से गौर से पढेंगे

Comment by वीनस केसरी on July 27, 2013 at 12:39am

केतन मेरे भाई, आप सीखना चाहते हैं यह किसी से छुपा नहीं है, और आप जिस लगन से सीख रहे हैं निश्चित ही बहुत कम समय में आप सीख भी जायेंगे ..और सीखने का एक ही तरीका है कि जहाँ न समझ आए वहाँ पूछ लिया जाए और जो जानकारी मिले उस पर विचार कर के उसको आत्मसात किया जाए ...इसमें आपको गलत कौन ठहरा सकता है ...

मगर आप अपने कमेन्ट की ओर फिर से ध्यान दीजिए ..

// कई मिसरे बेबहर हैं //

भाई ये आप पूछ रहे हैं या बता रहे हैं ???
अगर इसे पूछना कहते हैं तो बताना किसे कहते हैं ???

मैं आपको बताता हूँ कि पूछना किसे कहते हैं -

आदरणीया मैं ग़ज़ल विधा को अभी सीख रहा हूँ और इस उन्नत भाव की शानदार ग़ज़ल में बहर पर अटक रहा हूँ, मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि ये जो अंत में अतिरिक्त लघु आ रहा है इसके बाद भी ग़ज़ल नियम के अनुसार बहर में मान्य कैसे है ?
कृपया बना दें तो मेरी जाकारी बढ़ेगी और मैं आपका आभारी रहूँगा ..

केतन साहब इसे कहते हैं पूछना ... सीखने वाले ऐसे ही पूछ पूछ कर सीखते हैं
और आपने जो लिखा था उसे कहते हैं बताना

अब ज़रा सौरभ पाण्डेय जी के कमेन्ट के एक हिस्से को फिर से पढ़िए ...


केतन भाईजी, आपकी जिज्ञासा और उत्साह से हमसभी अभिभूत हैं. लेकिन सीखने का एक तरीका होता है. हम यह नहीं साझा करना चाहते कि आप पढ़ने और सीखने का तरीका सीखें. लेकिन किसी गंभीर और संयत रचनाकार की एक उच्च स्तर की रचना पर प्रश्न करते हुए पूछते हुए सीखना कि कई मिसरे बेबह्र हैं, कितना उचित है, इसपर सोचना आपसे अपेक्षित है.

Comment by कल्पना रामानी on July 26, 2013 at 6:51pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी, गीतिका जी,प्रशंसात्मक शब्दों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...

Comment by कल्पना रामानी on July 26, 2013 at 6:35pm

केतन जी मुझे आपकी किसी बात का बुरा नहीं लगा। मैं भी आपकी तरह इस मंच पर सीखने आई हूँ। मैंने आपसे यही कहा था कि स्पष्ट बताएं कि कहाँ शंका है। मैं समाधान करने कि कोशिश करूंगी। आप मेरे लिए आत्मीय हैं।

Comment by Ketan Parmar on July 26, 2013 at 4:17pm

Saadar Abhari Ganesh Sir Ka jinhone ye ghazal par jo mujhe doubt tha uska nivaran kiyaa hai.

ab jaakar ye ghazal samajh aayi hai toh Kalpana Didi daad kabul kare

aur apne iss chote bhai ko maaf bhi kare or aashirvaad de.

Comment by Abhinav Arun on July 26, 2013 at 3:29pm

आदरणीया कल्पना जी ! सीख देती ,आदर्श भावो से युक्त, हर निकष पर खरी इस ग़ज़ल के एक एक शेर पर सौ सौ दाद कबूल फरमाएं !! बार बार पढ़ी आपकी ये ग़ज़ल दिल की गहराई तक उतरती जाती है … और बाद पढने तक छाप छोडती है ।बहुत खूब !! साधुवाद साधुवाद इस सार्थक सटीक सशक्त लेखन पर !!

Comment by वेदिका on July 26, 2013 at 3:02pm

शुद्ध भावों से रचें, कोमल गज़ल के काफिये,

क्षुब्ध मन के पंक में, खिलते कमल पाएँगे आप। .... अहा! 

  

लाख टके की बात कह दी आपने,, आदरणीय कल्पना दीदी!

 उत्कृष्टता समाहित गज़ल पर बधाई लीजिये आदरणीया दीदी!   

 

Comment by Ketan Parmar on July 26, 2013 at 2:59pm

venus ji main surv pratham chhama prathi hoo agar mere kissi comment me kuch galat likh diyaa hai to magar main sikhna hi chahta hoo iss liye jaha par mujhe prashn chinh laga vaha maine aapna doubt prastoot kiyaa hai sabhi gurujano se fir ek baar maafi chahta hoo mera kahne ka matlab ye ghosna karna nahi tha ke ye ghazal behr me hai yaa nahi hai, main toh sirf aapne prashno ka hal dhudhne ki koshish kar raha hoo.

aur meri aesi bisaat kaha hai ke main koi ghazal ko behr me hai yaa nahi ye ghosit kar saku, Venus Ji or Kalpana mam main to abhi apne prshno me hi uljha hoo jiske nivaran hetu main OBO join kiya hai.

Mere comment ka tatpary kisi ko bada dikhana yaa kisi bhi adarniy Ya adarniyaa ko nicha dikhana nahi hai.

main sahridya sabhi sahitykar bandhu or gurujano ka saman karta hoo.

jaha tak rahi lekh dhyan se padhne ki baat toh wo main padhtaa bhi hoo magar kuch chize padhne se samajh nahi aati mujh aagyani ko issi karn jo gurujan milte hai online unse hamesha sawal karta hoo

Saadar

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