For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब तो कर दो बंद, लोगो प्रकृति का दोहन

दोहन करते प्रकृति का, बड़े बड़े विद्वान्

चला चला बस योजना, बनते खूब महान

बनते खूब महान , हरे जंगल कटवाते

दूषित कर परिवेश, कारखाने बनवाते

धरा बचाने आज, नहीं आने मनमोहन

अब तो कर दो बंद, लोगो प्रकृति का दोहन

 

संदीप पटेल “दीप”  

Views: 691

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 10:59pm

संदीप भाई बहुत सुन्दर! आपको ढेरों बधाई!

Comment by coontee mukerji on June 6, 2013 at 9:47pm

यह कड़वी सच्चाई हर किसी से छिपा नहीं......विडम्बना देखिये धरती का दोहन करते करते अब इंसान की नज़र उसके भाई पर

(मंगल ग्रह ) पड़ गयी है......देखें  अब क्या होता है.

सादर

 कुंती

Comment by Shyam Narain Verma on June 6, 2013 at 5:37pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 6, 2013 at 4:27pm

सुन्दर कुंडलिया छंद के माध्यम से अन्धाधुल्न्ध दोहन के प्रति चेतावनी देती रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री संदीप कुमार पटेल जी 

Comment by विजय मिश्र on June 6, 2013 at 10:21am
बंद न भी करें किन्तु व्यवस्थित अवश्य करें अन्यथा इस दोहन की प्रतिक्रिया बहुत ही वीभत्स होगी ,झेलना दुसाध्य होने वाला है . जीवन सन्देश है आपकी रचना .शुभेच्छाएँ .
Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 6, 2013 at 9:56am

सुन्दर कुण्डलिया के लिए बधाई किन्तु......प्रकृति का लोगो दोहन.....ऐसा कीजिये तो प्रवाह अधिक आयेगा....ऐसा मुझे लगता है 

Comment by annapurna bajpai on June 6, 2013 at 9:21am

आदरणीय संदीप जी बहुत सुन्दर कुण्डलिया की रचना की है टिप्पणी के तौर पर रविकर जी की रचना भी सराहनीय है.

Comment by रविकर on June 6, 2013 at 8:53am

बहुत बढ़िया आदरणीय संदीप जी-
शुभकामनायें-

दोहन हनन समान तब, जब मनमोहन मौन |
हनवाना हरदिन करे, रोक सकेगा कौन |
रोक सकेगा कौन, स्वयं कुदरत कुछ कर दे |
करे स्वयं संतुलित, स्वयं कुछ ऐसा वर दे |
सत्ता पाए शक्ति, सुधारे खुद के गोहन |
रोके बन्दर बाँट, तभी रुक पाए दोहन ||


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 8:16am

मनमोहने का श्लेष मज़ा दे गया..

इस संदेशपरक कुण्डलिया के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय संदीप जी.

Comment by ram shiromani pathak on June 6, 2013 at 12:02am

आदरणीय संदीप जी बहुत ही सुन्दर कुण्डलिया रची है भाई अपने ///बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service