For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ का पल्लू


मेरा छोटा भाई हमेशा मेरी माँ का पल्लू थामे रहता .माँ जहाँ भी जाती वह पल्लू पकड़े साथ साथ चलता . कभी कभी तो माँ को जब बाथरूम जाना होता तो और मुश्किल में पड़ जाती. कभी माँ खीज कर कहती – छोड़ो पल्लू बेटा ! इतना अपशकुन क्यों करते हो ? अगर मैं मर गयी तो क्या करोगे ?
अबोध बालक तो कुछ नहीं समझ पाया कि मृत्यु क्या होती हैं लेकिन होनी ने माँ की बात सुन ली . कुछ ही दिनों में मेरी माँ की मृत्यु हो गयी . माँ को जब ज़मीन पर लिटाया गया तो वह भी उसके पास लेट गया और अपनी मुट्ठी में माँ का पल्लू कस लिया . बड़े बुजुर्गों ने कहा, "बच्चे को रहने दो कुछ देर’’.
अर्थी उठने का जब समय आया तो किसी ने मेरे भाई को वहाँ से उठाने की कोशिश की, मगर सब कोशिश बेकार. वह टस से मस नहीं हुआ . न जाने कहाँ से उसके शरीर में इतनी शक्ति आ गयी थी जबकि उसकी आयु मुश्किल से चार साल की होगी . उसकी मुट्ठी में माँ का पल्लू कसा हुआ था . उस पल्लू को छुड़ाने में जब सभी लोग नाकाम रहे तब पंडित जी ने एक उपाय सुझाया कि पल्लू को कैंची से काट दिया जाय . माँ का अंतिम संस्कार तो हो गया लेकिन अपने छोटे भाई को संभालने में मुझे दिन में भी तारे दिखने लगे थे . मैं भी छोटी थी लेकिन समय ने मुझे असमय ही परिपक्व बना दिया था .
वक्त अगर घाव देता है तो मरहम का जुगाड़ भी कर देता है . आज वह शादी शुदा है . उसने माँ के श्रृंगार दान में आज भी उस पल्लू को सम्भाल कर रखा है. मैं जब भी मायके जाती हूँ उस पल्लू को खामोश नज़रों से देखती हूँ जिसमें एक बचपन कैद है . मेरी आँखों से दो श्रद्धा के सुमन झर जाते है .


( आप बीती – डायरी के पन्नों से. मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on May 10, 2013 at 11:59am
संस्मरण की भाव विह्वलता अपने में बहा लेती है .कुछ क्षण को मस्तिष्क प्रसंग के साथ बंध जाता है ठीक माँ की पल्लू की तरह.शव्दों के चयन ने भी जादूगरी कियी हैं . प्रसंशनीय . साधुवाद कुंतीजी .
Comment by vijay nikore on May 10, 2013 at 11:53am

आदरणीया मित्र कुंती जी,

 

आपने इस हृदय-विदारक पन्ने को हमारे संग साझा किया, आपका धन्यवाद।

 

यह केवल आपकी diary का पन्ना नहीं है, यह आपके जीवन का मार्मिक पन्ना है।

 

आपने इतना अच्छा लिखा है कि माँ के पल्लू का विन्यस्त दृश्य पढ़ते-पढ़ते

मेरी आँखों में समा गया है।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 9, 2013 at 7:05pm

आदरणीया कुंती जी 

अपनी डायरी के पन्नों में से एक अबसे अजीज आपबीती को आपने साँझा किया..माँ और बच्चे के इस अटूट भाव बंधन पर हृदय नम है...नत है ..सादर. 

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 9, 2013 at 1:42pm

आदरणीया आपकी रचना पढ़कर आँखें नम हो गईं, माँ से बिछड़ने की पीड़ा पुनः ह्रदय में आ गया मन को व्याकुल कर गया. कुछ और नहीं कह सकूँगा. सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 9, 2013 at 11:34am

माँ के पल्लू का वह टुकड़ा अनमोल हो गया, माँ की स्मृति जो बसी बसी है, पढ़ते पढ़ते जैसे ही आँख के कोर भीगने लगे, 

आपकी डायरी के अंश की प्रस्तुति का अंतिम चरण आ गया और लगा जैसे कोई कहानी अधूरी रहगयी | भाव-विव्हल करने 

वाली सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 8, 2013 at 8:28am

आदरणीया कुंती जी, बहुत मार्मिक यह दृश्य, आज पढने में भी आँखे नम कर रहा है उस लोकसे भी  माता का आशीष आप भाई बहनों पर सदा बना रहे. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 8, 2013 at 5:04am

प्रस्तुति समाप्त हो गयी है. क्या कहूँ ! निजी पन्नों से साझा हुई इस प्रस्तुति पर कुछ न कह पाऊँगा, आदरणीया कुन्ती जी. किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ.

सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 7, 2013 at 9:56pm

आ0 कुन्ती जी,   अतिसुन्दर .अश्रुपूरित नयन से मां को श्रध्दांजलि..  हार्दिक  बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by manoj shukla on May 7, 2013 at 9:04pm
आदर्णीया....बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....बधाई स्वीकार करें... सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service