For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?

मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||

सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||

सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा
तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||

मिटा डाली सभी यादें कहीं दिल में दफ़न कर दी
बिना बदनामियों के मिल रही रुसवाइयां क्यूँ हैं ||

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

.................manoj

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pawan amba on March 3, 2013 at 2:06pm

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको...bahut sundar 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 2, 2013 at 5:54pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल मनोज नौटियाल जी, हार्दिक बधाई 

Comment by Meena Pathak on March 2, 2013 at 4:24pm

बहुत सुन्दर गज़ल ... बधाई आप को

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2013 at 3:43pm

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||

kya kahne waah manoj hardik badhai aapko !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2013 at 3:27pm

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिये.

बधाई.. .

Comment by नादिर ख़ान on March 1, 2013 at 11:17pm

मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||
सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||

सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

बहुत खूब मनोज जी ये शेर बहुत पसंद आए ....

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 1, 2013 at 10:02pm
आदरणीय भाई मनोज जी!
बहुत ही उम्दा शेर कहा है आपने,बधाई।इन शेरों के लिये खास तौर पर-
//सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा
तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||//
Comment by SALIM RAZA REWA on March 1, 2013 at 9:30pm

सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है || manoj ji  sher achche hai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service