For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कच्चे रास्ते में, रास्ता होने की,

असली खुश्बू होती है।

वह चलता है और चलाता है

उसमें खुद को बदलने की हिम्मत है

वह कभी अहम नहीं करता।

वह बरसात की खुशबू को,

सुंदरता को,अच्छी तरह से परख़ता,

पहचानता है।

क्योंकि वह बरसात को सीने से लगा लेता है

वह आस-पास के पेड-पौधों से नहीं शर्माता।

उसे पता है कि शर्म उसकी खुशियों को रोकती है

उसे यह भी पता है

कि यह काम लोगों का है उसका नहीं।

वह अपने तन को धूल बनाकर

हवा के साथ हंसता हुआ उडा देता है

वह गीता के आत्म ज्ञान को कहता नहीं, भोगता है।

वह पक्का होना नहीं चाहता

वह आदमी से प्यार तो करता है

लेकिन उसे हमेशा यही डर सताता है

कंही वह उसे पक्का न कर दे।।

...........................सूबे सिंह सुजान...........

Views: 892

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 11:12am

बेहद सुन्‍दर रचना है, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 25, 2013 at 10:39pm

सरल सीधे शब्दों में कितनी गूढ़ बात को आपने साझा किया है ! वाह !

गाँव के कच्चे रास्तों और पगडंडियों के प्रति मन और नत हो गया. हार्दिक बधाई स्वीकारें भाईजी.

शुभेच्छाएँ

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 25, 2013 at 8:17pm

वाह वाह क्याबात है ...............सहज और सरल अभिव्यक्ति के लिए बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 25, 2013 at 6:30pm

वह गीता के आत्म ज्ञान को कहता नहीं, भोगता है।

वह पक्का होना नहीं चाहता

वह आदमी से प्यार तो करता है

लेकिन उसे हमेशा यही डर सताता है

कंही वह उसे पक्का न कर दे।। - बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्त हुए है, हार्दिक बधाई स्वीकारे श्री सूबे सिंह सुजान जी 
Comment by Vindu Babu on February 25, 2013 at 5:34pm
सादर अभिनन्दन सुजान जी!
साधारण विन्दु में इतने गहन विचारों की खोज और सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई.
Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 5:18pm

सुजान जी बहुत सुन्दर ढंग से बुनियादी बात उकेरी है आपने। बहुत बधाई।

Comment by सूबे सिंह सुजान on February 25, 2013 at 4:26pm

प्राची जी, सच कहूँ तो ......यह मेरा रास्ता है मैं आज भी इसी कच्चे रास्ते से आता जाता हूँ।।अभी कंई दिनों से बरसात चल रही थी........यह कविता बरसात में कच्चे रास्ते से जाते हुये बनी।।

Comment by सूबे सिंह सुजान on February 25, 2013 at 4:24pm

विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी...........जी आपका शुक्रिया..........यह हव....नहीं था गलती टंकण है...........वह लिखा था


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 25, 2013 at 3:37pm

भाव जैसे बह चले.... कच्चे रास्ते की विशिष्टता और उसके डर को आपकी अभिव्यक्ति के साथ साथ समझना अच्छा लगा... टंकण त्रुटियाँ एक दो जगह हैं, उन्हें सुधार लें.

बधाई इस रचना पर.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 25, 2013 at 11:34am
आदरणीय सुजान जी!बहुत ही सुन्दर कविता है।भावों की उन्मुक्त उड़ान है।यह //हव// कुछ समझ में नहीं आया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
40 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service