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ग़ज़ल - वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है

मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ

वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |

वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |

यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,

हयात अब कोई मसअला चाहती है |

उन्हें सोच लूँ या करूँ इसको पूरी,

ये ताज़ा ग़ज़ल जो हुआ चाहती है |

ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?

समझ में न आए वो क्या चाहती है |

पढ़ो खुद को 'वीनस' समझ जाओगे तुम,

अभी शाइरी तज्रिबा चाहती है |

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 7:00pm

वाह वाह वाह

क्या बात कही है


अभी शाइरी तज्रिबा चाहती है |

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये साहब

Comment by राजेश 'मृदु' on February 5, 2013 at 6:34pm

पूरी की पूरी गजल इतनी अच्‍छी है कि बार-बार पढ़ने को जी चाहता है । बहुत ही खूबसूरत ।

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 5, 2013 at 3:41pm

वाह भाई वाह..

अभी शायरी तज्रिबा चाहती है.. -- क्या शानदार बात कही आपने!

लाजवाब पुरकशिश ग़ज़ल पर मुबारकबाद.

हयात अब कोई मसअला चाहती है-- बहुत ख़ूब कहा...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2013 at 3:39pm

मतला माशाअल्लाह ! इसे कहते हैं कहना तो दीखे पर किसको कहा यह पाठक सोच ले. हमने राजनैतिक दायरे में सोचा .. हा हा हा... 

मग़र किस एक शेर अलग करूँ ?  लाज़वाब ! .. मतले के बाद हर शेर पर समझिये वाह-वाह करते गला बैठा जा रहा है.

बहुत बहुत बधाई एक क़ामयाब ग़ज़ल पर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 5, 2013 at 12:53pm

ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?

समझ में न आए वो क्या चाहती है |

 बहुत पसंद आया ये शेर दाद कबूले इस सुंदर ग़ज़ल के लिए  ,पहले शेर में बचा का प्रयोग क्या बचाव या बचना के सन्दर्भ में किया है क्या?

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 5, 2013 at 12:45pm

वाह क्या बात है वीनस भाई ,,,,,बहुत बहुत मुबारकबाद आपको,,,,

Comment by नादिर ख़ान on February 5, 2013 at 10:29am

ये नाज़ुक सा रिश्ता रहे ? टूट जाये ?

समझ में न आए वो क्या चाहती है |

वाह वीनस भाई आपकी हर बात निराली है 

शब्दों को जहाँ बैठा देते है वहीं का होकर रह जाता है 

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