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जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब 
तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता 
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को 
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||

तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में 
वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था 
तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी 
तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||

नज़र किसकी लगी होगी हमारे प्रेम-मंदिर को
ज़माने के कहे तुमने सभी उपवास रक्खे हैं
मिलन की चाहतें बस थीं, हमारी प्रार्थनाओं में
मगर रब ने हमारे वास्ते वनवास रक्खे हैं||

चलो छोडो किसे अब दोष का भागी बनाऊँ मै
अकेला हूँ नहीं जिसने जुदाई की सजा पाई
कई किस्से सुने थे पर कभी सोचा नहीं था ये 
इधर होगा कुआ अपने लिए, होगी उधर खाई||

अगर तुम चाहती हो खुश रहूँ मै प्यार खोकर भी 
खुशी से ना सही अपना कोई तुम घर बसा लेना 
नहीं मंजिल हमारे प्यार की हमको मिली लेकिन 
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||


चलो अब ये कलम भी आसुओं का हाल ना लिख दे 
दिलासों का बनाया घर खड़ा ज्यादा नहीं रहता 
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को 
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||...........मनोज

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Comment by vijay nikore on February 2, 2013 at 3:07pm

मनोज जी, इस बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद!

अगर तुम चाहती हो खुश रहूँ मै प्यार खोकर भी
खुशी से ना सही अपना कोई तुम घर बसा लेना
नहीं मंजिल हमारे प्यार की हमको मिली लेकिन
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||  ...वाह...वाह...वाह!

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 1, 2013 at 8:42pm

हृदय स्पर्शी रचना,किसी के प्यार में असफल होकर मन कि सम्वेद्नओ को बड़ी खूबसूरती से कविता कि लड़ियों में पिरोया है वाह बहुत बहुत बढ़ाई आपको मनोज जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 1, 2013 at 7:54pm

ह्रदय को छूती वेदना भरी अभ्व्यक्ति सुन्दर बन पड़ी है, बधाई मनोज नोटियाल भाई 

Comment by Meena Pathak on February 1, 2013 at 5:41pm

बहुत सुन्दर रचना ... बधाई

Comment by Manoj Nautiyal on February 1, 2013 at 1:14pm

बहुत बहुत आभार आपका प्राची सिंह जी , अरुण शर्मा जी , अशोककुमार जी , एवं आरती शर्मा जी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 1, 2013 at 12:40pm

जिस दर्द, विवशता और जुदाई की मनोदशा का चित्रण इस रचना में है, वह संवेदना ह्रदय को छू रही है.

इस मर्मस्पर्शी भाव सम्प्रेषण के लिए बधाई मनोज नौटियाल जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 11:05am

मनोज से प्रेम रस से ओतप्रोत बहुत ही सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 1, 2013 at 8:13am

जुदाई के आंसू और गम का फ़साना. सुन्दर रचना आद. मनोज जी

Comment by Aarti Sharma on January 31, 2013 at 10:08pm

हमारा प्यार चाहे मिलन की मंजिल नहीं पाया 
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||

बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना..बधाई.

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